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मंगल टाईपिंग (INDIANA)
created May 15th 2022, 03:04 by gg
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बारिश की शाम में आसमान का अधेरा मानो तर होकर भारी हो गया है। रंगरहित, विविधता रहित मेघों के खामोश दबाव के नीचे कलकत्ता शहर मानो एक बहुत बड़े उदास कुत्ते की तरह पूंछ के नीचे मुंह छिपा कुंडली मारकर चुपचाप पड़ा हुआ है। पिछली शाम से ही बूंद-बूंद भर बारिश होती रही है; इस बारिश में खिड़की की धूल कीचड़ बन गई है, किन्तु कीचड़ को धो डालने या बहा ले जाने योग्य पानी नहीं हुआ। आज तीसरे पहर चार बजे से बारिश बन्द है, लेकिन बादलों के रुख अच्छे नहीं हैं। किसी क्षण शुरु होने वाली बारिश के भय से भरी हुई सांझ की उस बेला में जब मन न सूने कमरे में टिकता है, न बाहर ठौर पाता है, एक तिमंजिले मकान की सीली हुई पर दो व्यक्ति बेंत के मूढ़ो पर बैठे हैं।
बचपन में यो दोनों मित्र स्कूल से आकर इसी छत पर दौड़-दौड़कर खेले हैं; इम्तिहान से पहले दोनों जोर-जोर से बोलकर पाठ याद करते हुए पागलों ती तरह तेजी से चक्कर काटते हुए इसी झत पर घूमे हैं। गर्मियों में कालेज से लोटकर शाम को इसी छत पर खाना खाकर बहस करने में ऐसे खो गए कि रात के दो बज गए हैं और जब सवेरे की धूप ने उनके चेरहे पर बहस करके उनको जगाया है तब उन्होंने चौककर जाना हे कि दोनों वहीं चटाई पर पड़े-पड़े ही सो गए थे। कालेज के इम्तिहान जब कोई बाकी न रहे, तब से इसी धत पर हर महीने में एक बार हिन्दू हितैषी सभा की बैठक होती रही है, इन दोनों मित्रों में एक सभा का सभापति हैं, और दूसरा सेक्रेटरी।
सभापित का नाम है गौरमोहन। जान-पहचान के लोग उसे ‘गोरा’ नाम से बुलाते हैं। वह मानो अनाप-शनाप बढ़कर आस-पास के लोगों से ऊपर उठ गया है। उसके कालेज के पंडितजी उसे राजतरंगिरि कहकर पुकराते थे। उसकी देह का रंग कुछ बहुत ही विकट रूप से गोरा था। उसे कोमल बनाने की तनिक-सी संगति भी उसमें नहीं थी। प्रायः छः फुट लम्बा कद, चोड़ी काठी, मानों बाघ के पंजे की तरह, गले का स्वर ऐसा भारी और गम्भीर कि एकाएक सुनने पर लोग चौककर पूछ बैठते हैं, यह क्या है? उसके चेहरे की गढ़न भी गैर-जरूरी तौर पर बड़ी और खासी सख्त है;
शायरी
जिन्दगी तस्वीर भी है, और तकदीर भी
फर्क तो सिर्फ रंगो का है
मनचाही रंगो से बने तो तस्वीर और
अनजाने रंगो से बने तो तकदीर।
उपरोक्त गद्यांश में मुझसे जो भी गलतीयां हुई है कृपया उसके लिए मुझे माफ कीजिए।
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बारिश की शाम में आसमान का अधेरा मानो तर होकर भारी हो गया है। रंगरहित, विविधता रहित मेघों के खामोश दबाव के नीचे कलकत्ता शहर मानो एक बहुत बड़े उदास कुत्ते की तरह पूंछ के नीचे मुंह छिपा कुंडली मारकर चुपचाप पड़ा हुआ है। पिछली शाम से ही बूंद-बूंद भर बारिश होती रही है; इस बारिश में खिड़की की धूल कीचड़ बन गई है, किन्तु कीचड़ को धो डालने या बहा ले जाने योग्य पानी नहीं हुआ। आज तीसरे पहर चार बजे से बारिश बन्द है, लेकिन बादलों के रुख अच्छे नहीं हैं। किसी क्षण शुरु होने वाली बारिश के भय से भरी हुई सांझ की उस बेला में जब मन न सूने कमरे में टिकता है, न बाहर ठौर पाता है, एक तिमंजिले मकान की सीली हुई पर दो व्यक्ति बेंत के मूढ़ो पर बैठे हैं।
बचपन में यो दोनों मित्र स्कूल से आकर इसी छत पर दौड़-दौड़कर खेले हैं; इम्तिहान से पहले दोनों जोर-जोर से बोलकर पाठ याद करते हुए पागलों ती तरह तेजी से चक्कर काटते हुए इसी झत पर घूमे हैं। गर्मियों में कालेज से लोटकर शाम को इसी छत पर खाना खाकर बहस करने में ऐसे खो गए कि रात के दो बज गए हैं और जब सवेरे की धूप ने उनके चेरहे पर बहस करके उनको जगाया है तब उन्होंने चौककर जाना हे कि दोनों वहीं चटाई पर पड़े-पड़े ही सो गए थे। कालेज के इम्तिहान जब कोई बाकी न रहे, तब से इसी धत पर हर महीने में एक बार हिन्दू हितैषी सभा की बैठक होती रही है, इन दोनों मित्रों में एक सभा का सभापति हैं, और दूसरा सेक्रेटरी।
सभापित का नाम है गौरमोहन। जान-पहचान के लोग उसे ‘गोरा’ नाम से बुलाते हैं। वह मानो अनाप-शनाप बढ़कर आस-पास के लोगों से ऊपर उठ गया है। उसके कालेज के पंडितजी उसे राजतरंगिरि कहकर पुकराते थे। उसकी देह का रंग कुछ बहुत ही विकट रूप से गोरा था। उसे कोमल बनाने की तनिक-सी संगति भी उसमें नहीं थी। प्रायः छः फुट लम्बा कद, चोड़ी काठी, मानों बाघ के पंजे की तरह, गले का स्वर ऐसा भारी और गम्भीर कि एकाएक सुनने पर लोग चौककर पूछ बैठते हैं, यह क्या है? उसके चेहरे की गढ़न भी गैर-जरूरी तौर पर बड़ी और खासी सख्त है;
शायरी
जिन्दगी तस्वीर भी है, और तकदीर भी
फर्क तो सिर्फ रंगो का है
मनचाही रंगो से बने तो तस्वीर और
अनजाने रंगो से बने तो तकदीर।
उपरोक्त गद्यांश में मुझसे जो भी गलतीयां हुई है कृपया उसके लिए मुझे माफ कीजिए।
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