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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Oct 23rd 2021, 04:32 by lovelesh shrivatri


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प्रत्‍येक वर्ष अक्‍टूबर माह के दूसरे गुरूवार को विश्‍व दृष्टि दिवस का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष 14 अक्‍टूबर को मनाए जाने वाले विश्‍व दृष्टि दिवस की थीम है लव योर आईज। सस्‍ते स्‍मार्टफोन की उपलब्‍धता, इंटरनेट कनेक्‍शन, सस्‍ते डेटा प्‍लान के चलते आज देशभर में 75 करोड़ से अधिक व्‍यक्ति प्रतिदिन स्‍मार्टफोन का उपयोग कर रहे है। भारत में विश्‍वभर में चीन के बाद सबसे अधिक स्‍मार्टफोन यूजर्स है। ऑनलाइन क्‍लासेज एवं घर पर काम करने के कारण कोरोनाकाल में बढ़ते स्‍क्रीन टाइम से डिजिटल आई स्‍ट्रेन का खतरा बढ़ा है। स्‍मार्टफोन के उपयोगकर्त्ता नोमोफोबिया नामक बीमारी का शिकार होते जा रहे है, जिसका अर्थ है स्‍मार्टफोन के बिना डर लगना अथवा बार-बार स्‍मार्टफोन फोन चेक करना, स्‍मार्टफोन के साथ सोना, स्‍मार्टफोन मिलने पर घबराहट होना, पसीना छूटना, लो-बेट्री होने पर गुस्‍सा आना अथवा डिप्रेशन में चले जाना। स्‍मार्टफोन एडिक्‍शन बढ़ता जा रहा है। अधिकांश लोगों की आंखों में चकाचौध लगना, धुंधलापन, जलन, थकान, सिरदर्द, नेत्रदर्द, चश्‍में का माइनस नम्‍बर मायोपिया बढ़ना जैसी नेत्र समस्‍याएं बढ़ती जा रही है। कोरोनाकाल खण्‍ड के दौरान बच्‍चों में मायोपिया नामक दृष्टि बहुत तेजी से बढ़ा है। स्‍मार्टफोन की स्‍क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी आंखों पर दुष्‍प्रभाव डालती है। रात्रि में सोने से पहले स्‍मार्टफोन का उपयोग करने पर नींद में व्‍यवधान हो सकता है।
छोटे बच्‍चे भी स्‍मार्टफोन का उपयोग खिलौनों के रूप में कर रहे है। व्‍यस्‍त माता-पिता, छोटे परिवार और एक संतान के चलते बच्‍चों का एकाकीपन दूर करने के लिए स्‍मार्टफोन को अपने छोटे बच्‍चों को पकड़ा देते है। इससे बच्‍चों को स्‍मार्टफोन की लत लग जाती है। इससे अनेक मानसिक, वैचारिक एवं शारीरिक परिवर्तन हो रहे है। स्‍मार्टफोन के माध्‍यम से सोशल मीडिया पर बच्‍चे आजकल कई-कई घंटे व्‍यस्‍त रहते है, जिसके कारण उनका सामाजिक एवं मानसिक विकास भी प्रभावित हो रहा है। इन बच्‍चों को पढ़ाई में एकाग्रता की कमी महसूस हो रही है एवं अनेक नेत्र समस्‍याएं भी जन्‍म ले रही है।    

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