Text Practice Mode
shivani shorthand typing center jiwaji ganj morena (M.P.) Mob. No. 8871426000
created Oct 23rd 2021, 02:09 by Shivani shorthand
0
475 words
13 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
देश के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका के पास मजबूत और सक्षम आंतरिक मूल्यांकन तंत्र है। जो पूरी कुशलता से काम कर रहा है। यह बात उन्होंने मुख्य न्यायाधीश और मुख्यमंत्री सम्मेलन के समापन के मौके पर कही। उन्होंने यह भी कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है। हमारा आंतरिक तंत्र पूरी तरह से कारगर है और प्रभावी तरीके से काम कर रहा है। जब हम छुट्टी पर होते हैं या फैसला लिख रहे होते हैं या प्रकरण की तैयारी करते हें तो हमें अपने परिवार के लिए भी समय नहीं मिलता। मुख्य न्यायाधीश ने आंतरिक तंत्र की सिफारिश पर एक जज के खिलाफ जाँच कमेटी बैठाने पर विचार किया जा रहा है। दूसरी ओर संसद द्वारा जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया आरंभ करने पर विचार किया जा रहा है। हमने इस सम्मेलन में फैसला किया है कि न्यायालयीन प्रकरण न्यायालय के अंदर दो साल से ज्यादा विचाराधीन रहे और पाँचसाल में उसका पूरा निस्तारण हो जाना चाहिए। हम चाहते हैं कि प्रकरण त्वरित रूप से निपटाये जाएं लेकिन हमारी कुछ समस्याएं हैं। जज और जनता के अनुपात में बहुत ही असमानता है। देश में 6 लाख लोगों पर एक जज काम कर रहा है और आज इस बात पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। चुनाव के समय भारतीय मतदाताओं के बारे में यह मान लिया जाता है कि वे वोट देते समय अपने हानि लाभ के बारे में, आस-पास हुए विकास के बारे में, मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं के बारे में, संतुलित ढंग से सोच करके वोट देंगे। यह माना जाता है कि वे उपलब्ध जानकारी के आधार पर अच्छी तरह सोच कर अपने मत का उपयोग करेंगे कि उन्हें पहले के सत्ताधारी दल से अपेक्षित लाभी मिला है कि नहीं। यह संभव है कि कई मतदाता इस तरह भली-भांति सोच कर वोट देते हाें। लेकिन यह मामला अधिकांश रूप से विचार-विमर्श और लाभ मिलने की बजा सामाजिक धारणा का ज्यादा होता है। अक्सर वोट इस धारणा के आधार पर दे दिया जाता है कि अमुक व्यक्ति,सत्ताधारी दल, विपक्षी दल से लाभ मिल सकता है। जाति के आधार पर आरक्षण प्राप्त करने की उम्मीद में वोट देने के कई उदाहरण हमारे सामने रहे हैं। कभी इसका उल्टा भी होता है, लाभ मिलने के बावजूद यह धारणा बन जाती है कि इससे हमें कोई फायदा नहीं हुआ और फिर लोग वोट नहीं देते। मतदाताओं का मनो-विज्ञान अन्य तरह की सोच से भी संचालित हो सकता है। एक तो हमारे यहाँ वोट बैंक की परंपरागत धारणा यह है कि जिसमें पूरा समुदाय या पूरा वर्ग यह मान बैठता है कि उसका भविष्य अमूक दल या नेता के साथ ही सुरक्षित है और फिर सारे वोट उसी नेता के पक्ष में पड़ जाते हैं। कई बार लगता है कि फलां ताकत के खिलाफ बगावत ही इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है, तो यह वोट न देने का कारण बन जाता है।
saving score / loading statistics ...