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साक्षी कम्प्यूटर गली नं.01 मेन रोड गुलाबरा छिंदवाड़ा (म.प्र.)
created Oct 22nd 2021, 11:38 by SakshiThakur
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पहले बैलगाडि़यों, फिर टेक्टर-ट्रालियों और इसके बाद जीप-कारों में जाती बारातों के बाद आज वह दिन आया है जबकि बारात हेलीकॉप्टर से आकर इतिहास बना रहीं है।
चमचमाती कारों के बेड़े में दुल्हन को ले बरात गांव के बाहर खेत पर आ पहुंची है। भारी चिल्लपों के साथ खेत के चारों ओर गांव के लोगों की भीड़ है। कच्ची-अंडी बच्चों से लेकर बूढ़े तक इस भीड़ का हिस्सा हैं। खेत को खूब ठोक-पीटकर पक्का किया गया है। गोबर से लीपकर हेलीपैड मान लिए गए इस स्थान पर एक हेलीपैड शोभायमान है। बरात इसी हेलीकॉप्टर से जाएगी। दूल्हा, नई-नवेली दुल्हन, दूल्हे के मां-बाप सबसे आगे खड़े है। बरात के रूप में यही चार जने उड़ने को तैयार है। ब्वाह के पूर्व की टर्म-एंड-कंडीशन प्रथा के तहत दूल्हे की जिद पर बीएमडब्ल्यू नामक लंबी कार दी जा चुकी है। दूल्हे का बाप प्रगतिवादी है। गांव और देश की बदलती तस्वीर देखना चाहता है। ऊंची सोच के साथ वह नाक को भी पहाड़-सी ऊंचाई देना चाहता है। उसकी जिद है कि बरातियों का स्वागत गुटके से हो न हो, विदाई वायु मार्ग से ही होना चाहिए। नई नवेली बहू का हल्ला इतना तो हो कि तीनों लोकों तक खबर जाए। लड़के वालों का क्या है, इससे लड़की वालो का ही मान बढ़ेगा सो लड़की का बाप भारी मन से उतना ही भारी भाड़ा चुकाकर हेलीकॉप्टर ले आया है। दूल्हे का सारा परिवार कुछ न कुछ काटता है। बाप का एक पैर राजनीति में तो दूसरा ठेकों में है। वह लीज़ पर पहाड़ काटता है तो लगे हाथ मज़दूरों का पेट भी। दूल्हे की मां चादी काटती है और दूल्हा समय काटता है। दूल्हे की मां दकियानूस है। बेटे की बारात में मां का जाना ठीक नहीं मानती। लेकिन वह आधुनिक सिर्फ इस ख्याल से हो गई है कि समधी के खर्च पर चीलगाड़ी में उड़ेगी । यही कारण है कि वह न केवल बारात में आई है वरन खूब नाची भी है।
दूल्हा अपने मां-बाप और दुल्हन समेत हेलीकॉप्टर में सवार हो चुका है। उड़़नखटाेले में बैठते दूल्हे और उसके मां-बाप के दिल बल्लियों से उछल रहे हैं मगर हेलीकॉप्टर के ऊपर उठते ही कलेजा मुंह को आने लगाा है। मां-बेटे ने रेवा मैया का जाप करते एक-दूसरे को थाम लिया।
हवा में आकर वे संयत होते हैं। आनंद से बाहर झांकते हैं। चींटी-से दिखते लोग और खिलौनों-सी गाडि़या मुह से निकलता है। दूल्हा पायलट की ओर देख लडि़याता है-अंकल जी, हवा में एकाध कलाबाजी खिलवाओं न। पायलट अंकल मुस्कराता है। आए दिन बराते लाता ले जाता है। उसे ऐसी मूर्खताएं सुनने की आदत हो गई है मगर दूल्हे का बाप चीखता है-पागल है ? पिछली बार तूने जीप को कैसी कलाबाजी खिलाई थी। पलटा ही दिया था। दूल्हा खीसें निपोर देता है, दुल्हन दुबक कर शांत बैठी हैै।गांंव पास आ रहा है दूल्हे का बाप चाहता है गांव को ऊपर से देखे। वह हेलीकाप्टर मुड़़वाता है । बचपन का मेरा गांव कितना बदल रहा है उसका अपना दिमाग कलाबाजी खा जाता है। दूल्हे की मैया के दिमाग में कुछ और ही चल रहा है । वह चाहती है कि काश, यह चीलगाड़ी अपनी हो जाए।
चमचमाती कारों के बेड़े में दुल्हन को ले बरात गांव के बाहर खेत पर आ पहुंची है। भारी चिल्लपों के साथ खेत के चारों ओर गांव के लोगों की भीड़ है। कच्ची-अंडी बच्चों से लेकर बूढ़े तक इस भीड़ का हिस्सा हैं। खेत को खूब ठोक-पीटकर पक्का किया गया है। गोबर से लीपकर हेलीपैड मान लिए गए इस स्थान पर एक हेलीपैड शोभायमान है। बरात इसी हेलीकॉप्टर से जाएगी। दूल्हा, नई-नवेली दुल्हन, दूल्हे के मां-बाप सबसे आगे खड़े है। बरात के रूप में यही चार जने उड़ने को तैयार है। ब्वाह के पूर्व की टर्म-एंड-कंडीशन प्रथा के तहत दूल्हे की जिद पर बीएमडब्ल्यू नामक लंबी कार दी जा चुकी है। दूल्हे का बाप प्रगतिवादी है। गांव और देश की बदलती तस्वीर देखना चाहता है। ऊंची सोच के साथ वह नाक को भी पहाड़-सी ऊंचाई देना चाहता है। उसकी जिद है कि बरातियों का स्वागत गुटके से हो न हो, विदाई वायु मार्ग से ही होना चाहिए। नई नवेली बहू का हल्ला इतना तो हो कि तीनों लोकों तक खबर जाए। लड़के वालों का क्या है, इससे लड़की वालो का ही मान बढ़ेगा सो लड़की का बाप भारी मन से उतना ही भारी भाड़ा चुकाकर हेलीकॉप्टर ले आया है। दूल्हे का सारा परिवार कुछ न कुछ काटता है। बाप का एक पैर राजनीति में तो दूसरा ठेकों में है। वह लीज़ पर पहाड़ काटता है तो लगे हाथ मज़दूरों का पेट भी। दूल्हे की मां चादी काटती है और दूल्हा समय काटता है। दूल्हे की मां दकियानूस है। बेटे की बारात में मां का जाना ठीक नहीं मानती। लेकिन वह आधुनिक सिर्फ इस ख्याल से हो गई है कि समधी के खर्च पर चीलगाड़ी में उड़ेगी । यही कारण है कि वह न केवल बारात में आई है वरन खूब नाची भी है।
दूल्हा अपने मां-बाप और दुल्हन समेत हेलीकॉप्टर में सवार हो चुका है। उड़़नखटाेले में बैठते दूल्हे और उसके मां-बाप के दिल बल्लियों से उछल रहे हैं मगर हेलीकॉप्टर के ऊपर उठते ही कलेजा मुंह को आने लगाा है। मां-बेटे ने रेवा मैया का जाप करते एक-दूसरे को थाम लिया।
हवा में आकर वे संयत होते हैं। आनंद से बाहर झांकते हैं। चींटी-से दिखते लोग और खिलौनों-सी गाडि़या मुह से निकलता है। दूल्हा पायलट की ओर देख लडि़याता है-अंकल जी, हवा में एकाध कलाबाजी खिलवाओं न। पायलट अंकल मुस्कराता है। आए दिन बराते लाता ले जाता है। उसे ऐसी मूर्खताएं सुनने की आदत हो गई है मगर दूल्हे का बाप चीखता है-पागल है ? पिछली बार तूने जीप को कैसी कलाबाजी खिलाई थी। पलटा ही दिया था। दूल्हा खीसें निपोर देता है, दुल्हन दुबक कर शांत बैठी हैै।गांंव पास आ रहा है दूल्हे का बाप चाहता है गांव को ऊपर से देखे। वह हेलीकाप्टर मुड़़वाता है । बचपन का मेरा गांव कितना बदल रहा है उसका अपना दिमाग कलाबाजी खा जाता है। दूल्हे की मैया के दिमाग में कुछ और ही चल रहा है । वह चाहती है कि काश, यह चीलगाड़ी अपनी हो जाए।
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