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दुनियां में कुछ लोग ऐसे होते हैं...

created Oct 21st 2021, 12:07 by soni51253


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दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो खुद में मस्त-व्यस्त रहते हैं। किसी से कुछ लेना-देना नहीं। आपकी खुशी में ही अपनी खुशी ढूंढ़ते हैं, आपके गम में अपना गम तलाशते हैं। कुछ लोग इसके उलट होते हैं, जो दूसरों में मीन-मेख निकालने के लिए ही जाने जाते हैं। आप खुश कैसे हैं, इसको लेकर ही परेशान रहते हैं। वह नहीं चाहते कि इस धरती पर कोई भी खुश रहे। वह जैसे खुद जलनशील हैं, वैसे ही सारी दुनिया दुख के महासागर में गोते लगाए तो उन्हें हार्दिक खुशी होगी। ठेठ हिंदी में इन्हें ईर्ष्यालु कह सकते है। इतिहास गवाह है, इन ईर्ष्यालु लोगों से समाज का और साहित्य का जितना अहित हो सकता था, इन्होने कर दिया है और आगे भी करते रहेंगे। ऐसे लोगों से बचने कि लिए एक सलाह दे रहा हूं कि आप सब कुछ बन जाएं, लेकिन संपादक ने बनें। यदि आप कभी गलती से संपादक बन बैठे और गलती से भी आपके संपादन में थोड़ी-बहुत गलती निकल गई,भले ही वो प्रकाशक की हो या प्रिंट की, भले ही वो आपके द्वारा की गई हो, लेकिन तूफान मचना तय है बात तब और दिलचस्प हो जाती है, जब आप किसी खास विचारधारा से संबंधित किताब को संपादित कर रहे होते हैं। जो दूसरे तरह के लोग होते हैं, वह सोचते हैं कि कैसे मेरी जगह अमुक आदमी इस किताब का संपादक बन बैठा है, जबकि कायदे से संपादन मुझे करना चाहिए, क्योंकि मठाधीश तो मैं हूं। लेकिन इस किस्म के लोगों से विचारधारा और साहित्य का कुछ भी भला नहीं होने वाला है। अपने जानने भर से वह भरसक हर चीज का अहित करते ही रहते हैं। चूंकि वे अंगुलीबाज है तो आपके संपादन में नुक्ता तक पर नजर बनाए हुए होते हैं। वह संपादन में किसी की भलाई के बारे में नहीं सोचते। इसलिए मेरा मानना है कि किताबें चाय की तरह धीरे-धीरे फूंक कर पीजिए और जहां तक हो सके, नुक्ते वाले महानुभावों से बचकर रहिए। बाकी सब डाइजेस्ट हो जाता है तो क्या यह संपादन कला डाइजेस्ट होगी? धकेल कर बाहर कीजिए इन अंगुलीबाजों को अपने आसपास से।  

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