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सॉंई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Oct 21st 2021, 11:57 by rajni shrivatri
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वायु प्रदूषण को लेकर जारी की गई ताजा रिपोर्ट चिंता बढ़ाने वाली है। यह रिपोर्ट बताती है कि जीवन के लिए खतरा बने प्रदूषण की रोकथाम के प्रयासों में भारत कहीं पीछे है। एशियाई देशों में सबसे प्रदूषित शहरों में हम तीसरे नम्बर पर है। पिछले दिनों ही प्रदूषण के संबंध में आई एक और रिपोर्ट में कहा गया था कि जहरीली हवा का यही हाल रहा तो भारतीयों की औसत उम्र छह साल कम होने का खतरा हो जाएगा। यह सच भी है कि दुनिया भर में युद्ध आंतकवाद व गंभीर बीमारियों से मौत का जितना खतरा हैं उससे कई गुना हवा में घुलते इस जहर का है।
डब्ल्यूएचओं ने जो रिपोर्ट जारी की है वह वायु प्रदूषण संशोधित मानकों के आधार पर है। बड़ी चिंता इस बात की है कि कोरोना महामारी में भी पन्द्रह फीसदी मरीजों की मौत की वजह पीएम-2.5 को माना गया है। सीधे तौर पर कोरोना संक्रमितों के श्वसन तंत्र में आई समस्याओं की बड़ी वजह वायु प्रदूषण भी रहा है। यही वजह है कि कोरोना की दूसरी लहर शहरों के साथ-साथ शहर बनते जा रहे गांवों में ज्यादा मारक साबित हुई। तीसरी लहर यदि आई तो बच्चों पर खतरा ज्यादा होगा, यह आशंका लंबे समय से जताई जा रही है। पहले ही हमारे यहां अधिकांश महानगर प्रदूषण के तय मानको पर खरे नहीं उतर रहे थे। डब्ल्यूएचओं ने प्रदूषण के पैमाने को लेकर जो नए मानक जारी किए है, उनके मुताबिक तो कई छोटे-बड़े शहर भी वायु प्रदूषण के तय मानक पर खरे उतर पाएंगे इसमें संदेह है। वायु प्रदूषण का सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ता है। जाहिर है चिकित्सा सेवाओं पर भी इसका दवाब पड़ता है। ऐसे दौर में जब पहले ही दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्था कोविड के कारण प्रभावित हुई है, सेहत के मोर्चे पर यह दबाव और भयावह हो सकता है।
देखा जाए तो वायु प्रदूषण का खतरा दुनिया भर में इस कदर बढ़ गया है कि बचाव के खास इंतजाम किए बिना राहत की उम्मीद नहीं की जा सकती। वह भी ऐसे दौर में, जब उद्योगों, वाहनों समेत तमाम दूसरे माध्यमों से हम सब वायु प्रदूषण बढ़ाानेमें ही लगे हुए है। ऐसे में सिर्फ एक ही तरीका है कि प्रदूषण की रोकथाम के प्रयास ईमानदारी से किए जाएं। तमाम वैश्विक मंचों पर तो प्रदूषण रोकथाम की चर्चा हो ही, सभी तरह का प्रदूषण कम करना सरकारों की प्राथमिकता में आना ही चाहिए।
डब्ल्यूएचओं ने जो रिपोर्ट जारी की है वह वायु प्रदूषण संशोधित मानकों के आधार पर है। बड़ी चिंता इस बात की है कि कोरोना महामारी में भी पन्द्रह फीसदी मरीजों की मौत की वजह पीएम-2.5 को माना गया है। सीधे तौर पर कोरोना संक्रमितों के श्वसन तंत्र में आई समस्याओं की बड़ी वजह वायु प्रदूषण भी रहा है। यही वजह है कि कोरोना की दूसरी लहर शहरों के साथ-साथ शहर बनते जा रहे गांवों में ज्यादा मारक साबित हुई। तीसरी लहर यदि आई तो बच्चों पर खतरा ज्यादा होगा, यह आशंका लंबे समय से जताई जा रही है। पहले ही हमारे यहां अधिकांश महानगर प्रदूषण के तय मानको पर खरे नहीं उतर रहे थे। डब्ल्यूएचओं ने प्रदूषण के पैमाने को लेकर जो नए मानक जारी किए है, उनके मुताबिक तो कई छोटे-बड़े शहर भी वायु प्रदूषण के तय मानक पर खरे उतर पाएंगे इसमें संदेह है। वायु प्रदूषण का सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ता है। जाहिर है चिकित्सा सेवाओं पर भी इसका दवाब पड़ता है। ऐसे दौर में जब पहले ही दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्था कोविड के कारण प्रभावित हुई है, सेहत के मोर्चे पर यह दबाव और भयावह हो सकता है।
देखा जाए तो वायु प्रदूषण का खतरा दुनिया भर में इस कदर बढ़ गया है कि बचाव के खास इंतजाम किए बिना राहत की उम्मीद नहीं की जा सकती। वह भी ऐसे दौर में, जब उद्योगों, वाहनों समेत तमाम दूसरे माध्यमों से हम सब वायु प्रदूषण बढ़ाानेमें ही लगे हुए है। ऐसे में सिर्फ एक ही तरीका है कि प्रदूषण की रोकथाम के प्रयास ईमानदारी से किए जाएं। तमाम वैश्विक मंचों पर तो प्रदूषण रोकथाम की चर्चा हो ही, सभी तरह का प्रदूषण कम करना सरकारों की प्राथमिकता में आना ही चाहिए।
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