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created Oct 21st 2021, 03:56 by lovelesh shrivatri
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पिछले बीस सालों से करदाताओं के पैसे से वित्तपोषित अनुसंधान कार्यक्रम महामारी जनक वायरस पहचानने और बनाने का जरिया बन गए हैं, वह भी बेहद कम पारदर्शिता के साथ। इसका नवीनतम साक्ष्य मिला 21 सितंबर को, जब ऑनलाइन जासूसों के एक समूह ने कथित तौर पर लीक दस्तावेज जारी कर दिये, जिनसे 2018 के एक बड़े प्रस्ताव को फंड नहीं मिला। इसके लिए 1.4 करोड़ डाॅलर मांगे गए थे और मकसद था- अत्यधिक संक्रमक सार्स-जैसे कोरोना वायरसों को खोजना और जोड-तोड़ कर ऐसे वायरस तैयार करना। इस खुलासे से सबसे ज्यादा ध्यान यह बात खींचती है कि प्रस्ताव में चीन की वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायोलॉजी लैब के आरंभिक आंकड़ों का जिक्र है, जिस लैब का कोविड-19 महामारी का संभावित सत्रोत होना जांच के दायरे में हैं। जो पर्याप्त रूप से पूछा नहीं गया वह सबसे बड़ा सवाल है- कोई दुनिया को यह सिखाने की कोशिश आखिर क्यों कर रहा है कि लाखों की जान लेने वाले वायरस कैसे बनाए जातें? दुनिया में तबाही मचाने में सक्षम परमाणु भौतिकी की तरह महामारी जीव विज्ञान के प्रसार को भी वैश्विक सुरक्षा से जुड़ा विषय समझा जाना चाहिए। परमाणु हथियार बनाने के लिए तो राष्ट्रीय-राज्यीय संसाधनों की जरूरत होती है, पर बहुत से लोग अब स्वयं वायरस बनाने व उनके साथ छेड़छाड़ करने लगे हैं। बायोटेक्नोलॉजी के बारे में अपने गैराज में ही कर सकता है, लेकिन यह गलत है। बायोइंजीनियरिंग के लिए वर्षों प्रशिक्षण की जरूरत होती है। फिर भी ऐसे लोग कम नहीं है जो सिंथेटिक डीएनए से वायरस बना सकते हैं। एमआइटी में मेरी अपनी लैब में पांच लोग ऐसा करने में सक्षम हैं। तो नए महामारी वायरस की खोज क्यों की जाए? लुभाने वाला विचार यह है कि शोधकर्ता अनुमानित पांच लाख जीव-जंतु वायरसों में से अगली महामारी फैलाने में सक्षम वायरस के बारे में जान सकते हैं, और फिर सबसे जोखिमपूर्ण वायरसों के खिलाफ सुरक्षा चक्र तैयार कर सकते हैं। लेकिन ऐसे एक वायरस की पहचान करने का मतलब हैं, हजारों लोगों को इसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का मौका देना। खतरनाक वायरसों की खोज करना या कमजोर वायरस की ताकत बढ़ाना ऐसा ही है, जैसे महामारी के शास्त्रागार का ब्लुप्रिंट साझा करना। इससे पहले कि हम परमाणु हथियारों जितने घातक वायरसों की खोज करें, हमें इनके दुरूपयोग के परिणामों को जान लेना चाहिए। मानवता का कोई एक शत्रु भी दुनियाभर में अलग-अलग स्थानों पर एक से अधिक महामारी वायरसों को इस तरह फैला सकता है नियंत्रण असंभव हो जाए। शुक्र है कि हम अभी तक ऐसे किसी पशू जनित वायरस के बारे में नहीं जानते, पर गेन-ऑफ फंक्शन रिसर्च प्रोजेक्ट यदि ऐसे वायरस विकसित करने में कामयाब हुए तो जो अभी तक नहीं हुआ, वह होगा। विश्व की कई स्वास्थ्य एजेंसियां महामारी कारक वायरस की खोज, अध्ययन व रैंक-ऑर्डर तय करने के प्रयासों को निधि मुहैया करा रही हैं। लेकिन सुरक्षा और अप्रसार इन वैज्ञानिकों के प्रशिक्षण व जिम्मेदारी का हिस्सा नहीं है। ऐसे अनुसंधान जुआ है और इनके लिए मानव सभ्यता को जोखिम में नहीं डाला जा सकता।
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