eng
competition

Text Practice Mode

CPCT/MP Highcourt Hindi Typing by Sanju Sharma Mob-8349880126

created Oct 20th 2021, 15:27 by sanjusharma


1


Rating

339 words
8 completed
00:00
जब मैं झॉंसी में था तब वहॉं के तहसीली स्‍कूल के एक अध्‍यापक ने मुझे कोर्स की एक पुस्‍तक दिखाई। नाम था- तृतीय रीडर। उसने उसमें बहुत से दोष दिखाए। उस समय त‍क मेरी लिखी हुई कुछ समालेाचनाएं प्रकाशित हो चुकी थीं। इससे उस अध्‍यापक ने मुझसे उस रीडर की भी आलोचना लिखकर प्रकाशित करने का आग्रह किया। मैंने रीडर पढ़ी और अध्‍यापक महाशय की शिकायत को ठीक पाया। नतीजा यह हुआ कि उसकी समालोचना मैंने पुस्‍तकाकार में प्रकाशित की इस रीडर का स्‍वत्‍वाधिकारी था, प्रयाग का इंडियन प्रेस। अतएव इस समालोचना की बदौलत उसने 'सरस्‍वती' पत्रिका का संपादन कार्य मुझे दे डालने की इच्‍छा प्रकट की। मैंने उसे स्‍वीकार कद लिया। यह घटना रेल की नौकरी छोड़ने के एक साल पहले की है। नौकरी छोड़ने पर मेेरे मित्राें ने कई प्रकार से मेरी सहायता करने की इच्‍छा प्रकट की। किसी ने कहा- ''आओं, मैं तुम्‍हें अपना प्राइवेट सेक्रेटरी बनाऊँगा।'' किसी ने लिखा- '' मैं तुम्‍हारे साथ बैठकर संस्‍कृत पढूँगा।'' किसी ने कहा मैं तुम्‍हारे लिए छापाखाना खुलवा दूँगा। इतयादि। पर मैंने सबको अपनी कृतज्ञता की सूचना दे दी और लिख दिया कि अभी मुझे आपके सहायतादान की विशेष आवश्‍यकता नहीं। मैंने सोचा अव्‍यवस्थित चित्‍त मनुष्‍य की सफलता में सदा संदेह रहता है। क्‍यों मैं अंगीकृत कार्य ही में अपनी सारी शक्ति लगा दूँ। प्रयत्‍न और परिश्रम की बड़ी महिमा है। अतएव सब तज हरि भज की मसल को चरितार्थ करता हुआ इंडियन प्रेस के प्रदत्‍त काम मे ही मैं अपनी शक्ति खर्च करने लगा। हॉं, जो थोड़ा बहुत अवकाश कभी मिलता तो मैं उसमें अनुवाद आदि का कुछ काम और करता था। समय की कमी के कारण मैं विशेष अध्‍ययन कर सका। इसी से 'संपत्तिशास्‍त्र' नामक पुस्‍तक को छोड़कर और किसी अच्‍छे विषय पर मैं कोई नई पुस्‍तक लिख सका।  
    मेरी सेवा से 'सरस्‍वती' का प्रचार जैसे-जैसे बढ़ता गया और मालिक का मैंं जैसे-जैसे अधिकाधिक विश्‍वासभाजन होता गया वैसे ही मेरी सेवा का बदला भी मिलता गया और मेरी आर्थिक स्थिति प्राय: वैसी ही हो गई जैसी रेलवे की नौकरी छोड़ने के समय थी।  

saving score / loading statistics ...