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सॉंई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Oct 20th 2021, 07:15 by Jyotishrivatri
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उपाध्यक्ष महोदय, शिक्षा के माध्यम के संबंध में इस सदन में अभी कोई सदस्यों ने अपने-अपने विचार रखे है। सबसे पहले मैं अध्यक्ष महोदय और सदन का ध्यान इस बात की तरफ दिलाना चाहता हूं कि शिक्षा कई माध्यामों के द्वारा दी जा सकती है। जितनी भी विचार-धारा शिक्षा के माध्यम के संबंध में है, चाहे वे प्राकृतिक हो या चाहे ललित-कला हो अथवा खेल-खूद हो या श्रमिक हो या भाषा हो, इन सब माध्यमों का इस्तेमाल करके हमें विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा प्रदान करनी चाहिए कि उनके व्यक्तित्व का चौतरफा विकास हो सके।
इन सब माध्यमों में भाषा का भी अपना एक महत्व है, लेकिन भाषा की बात यह है कि आजकल हम केवल भाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाकर चल रहे हैं, जिसका नतीजा यह हुआ है कि केवल किताबी शिक्षा ही हम अपने बच्चों को दे सके और केवल किताबी शिक्षा के बल पर न तो उनके व्यक्तित्व का ही विकास हो सका है, न हम अपनी शिक्षा को अच्छे स्तर पर ला सके हैं, इसलिए मेरा निवेदन यह है कि भाषा के अलावा अन्य जितने भी माध्यम शिक्षा के हैं, उन सभी माध्यमों को हमारी शिक्षा-प्रणाली में उचित स्थान दिया जाना चाहिए। जहॉ तक भाषा का सवाल है दुनिया के सारे शिक्षा शास्त्री और हमारे आयोग में भी जो शिक्षा-शास्त्री थे, उनकी भी यह राय थी कि शिक्षा का माध्यम अगर कोई भाषा हो सकती है तो वह मातृ-भाषा के अलावा अगर अन्य किसी भाषा में अगर शिक्षा दी जाती है तो वह शिक्षा अच्छी नहीं कही जा सकती क्योंकि उसमें बच्चों की शक्ति की बड़ी हानि होती है। जो शिक्षा हम मातृ-भाषा के माध्यम से केवल 5 वर्षो में दे सकते हैं, वह दूसरी भाषा के माध्यम से हम 15 वर्षो में भी नहीं दे सकेंगे।
इन सब माध्यमों में भाषा का भी अपना एक महत्व है, लेकिन भाषा की बात यह है कि आजकल हम केवल भाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाकर चल रहे हैं, जिसका नतीजा यह हुआ है कि केवल किताबी शिक्षा ही हम अपने बच्चों को दे सके और केवल किताबी शिक्षा के बल पर न तो उनके व्यक्तित्व का ही विकास हो सका है, न हम अपनी शिक्षा को अच्छे स्तर पर ला सके हैं, इसलिए मेरा निवेदन यह है कि भाषा के अलावा अन्य जितने भी माध्यम शिक्षा के हैं, उन सभी माध्यमों को हमारी शिक्षा-प्रणाली में उचित स्थान दिया जाना चाहिए। जहॉ तक भाषा का सवाल है दुनिया के सारे शिक्षा शास्त्री और हमारे आयोग में भी जो शिक्षा-शास्त्री थे, उनकी भी यह राय थी कि शिक्षा का माध्यम अगर कोई भाषा हो सकती है तो वह मातृ-भाषा के अलावा अगर अन्य किसी भाषा में अगर शिक्षा दी जाती है तो वह शिक्षा अच्छी नहीं कही जा सकती क्योंकि उसमें बच्चों की शक्ति की बड़ी हानि होती है। जो शिक्षा हम मातृ-भाषा के माध्यम से केवल 5 वर्षो में दे सकते हैं, वह दूसरी भाषा के माध्यम से हम 15 वर्षो में भी नहीं दे सकेंगे।
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