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created Oct 20th 2021, 05:38 by sandhya shrivatri
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भारतीय अर्थव्यवस्था में विशेषकर पिछले सात वर्षो में तेजी से बदलाव हो रहे हैं और इन्हें परिवर्तनकारी कहा जा सकता है। भारत को कमजोर समाजवाद से दूर और भारतीय लोकाचार व परम्पराओं के अनुरूप मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की ओर ले जाना बड़ा कार्य हैं। समाजवाद, खासकर लाइसेंस-कोटा राज ने भारत के उद्यमियों के लिए विभिन्न प्रकार की बाधाएं पैदा कर दी। उनकी संपत्ति उनके संसाधन धीरे-धीरे नष्ट होते गए। इससे निराशा का वातावरण पैदा हुआ। यद्यपि हमारी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण 1991 में शुरू हुआ था, लेकिन कई आवश्यक सहायक कार्य पूरे नहीं किए जा सके। इस कारण अर्थव्यवस्था पर उदारीकरण का सकारात्मक प्रभाव कम हो गया। एक दशक बाद कुछ प्रयास शुरू हुए, लेकिन जल्द ही सरकार बदल गई। दुर्भाग्य से उस अल्प-अवधि के बाद जो हुआ, उसे एक खोया हुआ दशक कहा जा सकता है, जिसने हमें इतनी बुरी तरह से पीछे कर दिया कि हमें पांच कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में से एक की संज्ञा दी गई। वर्ष 2014 में जब नई सरकार का गठन हुआ, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नए भारत के निर्माण का संकल्प किया। उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में लगातार तीन कार्यकाल का अनुभव था। जनसांख्यिकीय लाभांश ने एक विशाल बाजार प्रदान किया। युवा, उद्यमी के रूप में सेवा देने के लिए तैयार हो रहे थे। उनके नवाचारों को मान्यता नहीं मिल रही थी, भले ही वे घर से दूर रहकर विभिन्न अर्थव्यस्थाओं में योगदान दे रहे थे। युवा प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण दक्षता ला सकते हैं। न्यू इंडिया में सभी मूलभूत जरूरतें, जैसे पानी, स्वच्छता, आवास और स्वास्थ्य आदि पूरी करने का लक्ष्य रखा। न्यू इंडिया की नीतियां में लोगों को सशक्त बनाने पर ध्यान दिया गया है। मुश्किल यह है कि दशकों के प्रयास के बाद भी नीतियां गरीबी, बेरोजगारी और अभाव के दुश्चक्र को तोड़ने में विफल रहीं । पुराने भारत में हमारे पारंपरिक कौशल और शिल्पकारों को एक गौरवशाली आवरण में ढक रखा था, जिससे निकलकर वे विकसित होते बाजारों तक नहीं पहुंच सके। उनकी रक्षा करने के नाम पर उन्हें आरक्षित सूची में रखा गया, जिससे उनकी पहुंच और प्रतिस्पर्धा प्रतिबंधित हो गई। साम्राज्यवाद से पहले विश्व बाजारों पर विजय प्राप्त करने वालों को एक गलत निर्णय ने कमजोर और महत्वहीन कर दिया। हमारे किसान अप्रत्यासित जलवायु परिस्थितियों का सामना करते हुए भी भरपूर फसलें पैदा कर रहे थे, लेकिन किसान कई प्रतिबंधों से बंधे थे, जिनके परिणामस्वरूप उनकी आय बहुत कम हो गई थी। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में लगभग प्रत्येक जिले के लिए एक विशिष्ट स्थानी उत्पाद था, लेकिन उन्हें एक गौण भूमिका निभाने के लिए छोड़ दिया गया था। कौशल, कारीगर, स्थानीय उत्पाद, डेयरी और कपड़ा सहकारी समिति सभी को कायाकल्प की आवश्यकता थी। पुराने भारत को अपनी विशिष्ट प्रकृति, गुण, रंग और स्वाद को अपनाने के लिए जीवंत होने की जरूरत है, ताकि न्यू इंडिया को अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ रखा जा सके।
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