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सॉंई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Oct 20th 2021, 04:52 by Sai computer typing
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जम्मू-कश्मीर में आंतकवाद के सफाए के लिए सेना और स्थानीय सुरक्षा बलों के अभियान के बीच एलओसी से सटे पीर पंजाल इलाके में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में सेना के पांच जवानों की शहादत ने सीमा पर से हो रही घुसपैठ के खतरों की ओर फिर से आगाह किया है। समूचे घटनाक्रम को लेकर जो जानकारी सामने आई हैं, उससे लगता हैं कि आतंकियों को सुरक्षा बलों की कार्रवाई की भनक पहले ही लग चुकी थी और वे घात लगाकर हमले के लिए तैयार बैठे थे। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि आतंकियों को घेरने गए सुरक्षा बलों को आतंकियों की संख्या और उनके पास मौजूद हथियारो के बारे में सही अंदाजा नहीं लग पाया। पिछले एक सप्ताह के दौरान घाटी में आम नागरिकों पर हमले की घटनाओं और जवानों के साथ हुई मुठभेड़ से यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर में वे लोग अमन-चैन के हालात नहीं बनने देना चाहते, जो आतंक के पोषक और आतंकियों के खैरख्वाह हैं। यह आशंका भी सच होती हुई दिख रही है कि अफगानिस्तान में तालिबानियों के सत्ता पर काबिज होने के बाद घाटी में भी आतंकी सिर उठा सकते है। अहम सवाल यह है कि कहीं हमारे खुफिया तंत्र को आतंकियों के बारे में दी जा रही सूचनाओं को लेकर गुमराह तो नहीं किया जा रहा? यह भी हो सकता है कि सेना के ऑपरेशन की जानकारी पहले से ही आतंकियों के पास पहुंच जाती हो? दोनों ही स्थितियों में जरूरत इस बात की है कि उन लोगों पर नकेल कसी जाए, जो आतंकियों और आतंकी संगठनों के मददगार बने हुए हैं। खास तौर से घाटी में तो यह कहा जा रहा हैं कि जैसे ही वहां आतंकवाद की कमर तोड़ने के प्रयास होते हैं, नए नाम से आतंकी संगठन खड़े हो जाते है। अब वहां पर अल्पसंख्यकों को जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है, उससे भी लगता है कि आतंकी घटनाओं को अंजाम देकर लोगों में डर बैठाने का प्रयास किया जा रहा है। जाहिर है स्थानीय लोगों की मदद के बिना आतंकी अपने नापाक मंसूबों को अंजाम नहीं दे सकते। हमारे जवानों की शहादत भी इसीलिए हो रही हैं, क्योंकि आतंकियों के मददगारों की कमर अभी पूरी तरह टूटना बाकी हैं। पिछले एक दशक के दौर में घाटी में आतंकी संगठनों ने स्थानीय युवाओं को गुमराह कर अपना खूफिया तंत्र अलग से बना लिया है। यह तंत्र उनका मददगार साबित हो रहा है। ऐसे में सबसे पहले इस नेटवर्क को तोड़ना जरूरी है, जो आतंकियों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में मदद कर रहा हैं।
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