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created Sep 23rd 2021, 03:50 by Jyotishrivatri
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आप जिनसे बहुत प्रेम करते है या जिनसे आप बहुत घृणा करते है, उन दोनों के साथ ही आपका बहुत ज्यादा कर्म बंधन है। तो कर्म इस वजह से नही होता, क्योंकि आप जीवन में किसी से संबंध बनाते है, बल्कि कर्म इसलिए है कि आप अपने मन में किस तरह जूझ रहे है। कर्म वह है जो आप अपने भीतर कर रहे है। तो आप अपने साथ किस तरह का कर्म करते है, इसका चुनाव आपको खुद करना है। आप चाहें तो दुखी रह सकते है और चाहें तो आनंदमय हो सकते है। आप चाहें तो कृतज्ञता में जी सकते है या बिना कारण खुद को तकलीफ दे सकते है। सब कुछ आपका ही किया धरा है। कर्म का अर्थ है करनी। किसकी करनी? मेरी अपनी करनी। आपको यह समझना है कि जीवन स्वयं आपका रचा हुआ है। चूंकि यह सिर्फ आपकी करनी है, किसी दूसरे की नहीं, इसलिए आप ही इसे तोड़ सकते है, इससे छुटकारा पा सकते है। अगर भगवान की करनी होती, भगवान का बनाया फंदा होता, तो क्या आप इसका तोड़ निकाल पाते। सारे कर्म बंधन आपके बनाए हुए है। इसलिए मुक्ति भी आपकी ही करनी से होगी। कोई दूसरा आपकी मदद कर सकता है, पर यह आपका आंतरिक कार्य है।
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