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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Jul 16th 2021, 09:17 by Mind Game


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कोरोना के बहाने तमाम साहित्‍यकारों और विद्वानों का ध्‍यान महामारी और अकाल की तरफ गया है। यह चर्चा-परिचर्चा का प्रमुख विषय बन गया है। जांच-पड़ताल चल रही है‍ कि हिंदी साहित्‍य में महामारी और अकाल को लेकर साहित्‍य लिखा गया है या नहीं? जाहिर सी बात है कि अकाल और महामारी जैसे विषय पर हिंदी और अन्‍य भारतीय भाषाओं में काफी साहित्यिक रचनाएं लिखी जा चुकी हैं। आजकल भी काफी कुछ लिखा जा रहा है। उम्‍मीद है आने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में अकाल और महामारी संबंधी साहित्यिक रचनाओं से प्रश्‍न पूछे जाएं।  
    अकाल और महामारी पर भक्ति काल में कबीरदास और तुलसीदास जैसे कवियों के यहां काफी कुछ लिखा गया है। कबीर के यहा कहीं-कहीं जिक्र भर हुआ है लेकिन तुलसीदास ने इस पर काफी लिखा है। वहीं आधुनिक काल के आरम्‍भ में यह तंत्र-मंत्र तक सीमित हो जाता है। चन्‍द्रप्रभा जैसी पत्रिकाओं में मलेरिया-मंत्र भी मिलते हैं। भरतेंदु हैजे से बचने के लिए जंतर पहनने को कारगर मानते थे। महावीरप्रसाद द्विवेदी ने 'प्‍लेगस्‍तवराज' की आरम्भिक और अंतिम पंक्तियां संस्‍कृत में लिखीं। बम्‍बई के प्रसिद्ध डॉक्‍टर गोपीनाथ कृष्‍णजी की दवाईओं का एक विज्ञापन देखने से पता चलता है कि उनके पास बुखार, सुजाक, सफेद कोढ़, हैजे की दवाईयां उपलब्‍ध हैं लेकिन प्‍लेग-मलेरिया की नहीं।  
    लेकिन आगे चलकर बहुत सारी रचनाएं प्रकाश में आईं जिनमें महामारी और अकाल पर विस्‍तार के साथ उन कारणों की जांच-पड़ताल भी की गई। महामारी और अकाल विषयवस्‍तु को लेकर लगभग साहित्‍य की हर विधाओं में लिखा गया है।  

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