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created Jul 15th 2021, 14:09 by Vikram Thakre


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भारत में कोरोना वायरस के मामलों के कम होने के बीच बड़ी संख्‍या में लोगों के बाजारों का रुख करने, सार्वजनिक और पर्यटन स्‍थलों की ओर जाने और कोविड से बचाव के नियमों का पालन नहीं करने पर विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है. उन्‍होंने कहा कि संक्रमण को नियंत्रित करने में समाज की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और लोग खतरे को नहीं देख पा रहे हैं. विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि जनता के रवैये में बदलाव के लिए सरकार में उनका भरोसा अहम होता है, लेकिन दुर्भाग्‍य से देश में लोगों का राजनीति पार्टियों में यकीन कम है. उनका यह भी कहना है कि संक्रमण की गंभीरता और टीकाकरण दर के बारे में अस्‍पष्‍ट जानकारी देने से भी भम्र की स्थिति  पैदा हुई है. गौरतलब है कि सोशल मीडिया और अन्‍य संचार माध्‍यमों पर पहाड़ो वाले पर्यटन स्‍थलों पर एंट्री के लिए कारों की लंबी कतारों और लोगों की भीड़ की तस्‍वीरें सामने आई हैं, जिससे कई हलकों में चिंता बढ़ी है. अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने के चक्‍कर में लोगों ने बचाव के बुनियादी उपाय करना भी छोड़ दिया है. वरिष्‍ठ महामारी विशेषज्ञ ललित कांत ने कहा कि नियमों का पालन नहीं करना, लोगों की उदासीनता और जो होगा ईश्‍वर की मर्जी से होगा का मिश्रण है. मानव व्‍यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्‍थान के निदेशक नीमेश देसाई का कहना है कि मास्‍क लगाना और सामाजिक दूरी का पालन नहीं करने जैसी लापरवाही का कारण यह है कि लोग खतरे को नहीं देख पा रहे हैं. उन्‍होंने कहा कि लोग खतरे को जिस तरह से आंकते हैं, उसके हिसाब से अपना व्‍यवहार बदलते हैं. उन्‍हें समझना चाहिए कि तीसरी लहर कभी भी दस्‍तक दे सकती है.
देसाई का कहना है कि भारत में सामाजिक गैर जिम्‍मेदारी की भारी प्रवृत्ति देखी गई है. उन्‍होंने यह भी कहा कि लोगों को व्‍यवहार बदलने के लिए प्रेरित करना मुश्किल है, नामुमकिन नहीं. एआईआईएमएस के महामारी विज्ञान और संचारी रोग प्रभाग के पूर्व प्रमुख कांत ने  कहा कि लोग जिस तरह से कोविड उपयुक्‍त व्यवहार का पालन करेंगे, उसी के मुताबिक महामारी के मामले घटेंगे या बढ़ेंगे.
 

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