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created Jul 14th 2021, 13:28 by Vikram Thakre


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मैं खुद पढ़ी-लिखी नहीं हूं लेकिन यह अच्‍छी तरह जानती हूं की पढ़ाई-लिखाई में बड़ी ताकत है। मैं यही ताकत बेटियों और बेटे को दिलाना चाहती थी ताकि वे काबिल बन सकें। वर्ष 2002 में पति के निधन के बाद मुश्किल आई। मुझे खेत संभालना था और चूल्‍हा-चौका भी। सुबह उठते ही मैं खेत पर जाती और बच्‍चों को दौड़ के लिए भेजती, मुझे ज्‍यादा नौकरियों का पता ही नहीं था। इतना जानती थी कि फौज और पुलिस में जाने के लिए दौड़ में पास होना जरूरी है, इसलिए बच्‍चों की फिटनेस पर ध्‍यान दिया। दिक्‍कत तब आती थी जब खेती करके और पशुओं का दूध बेचकर भी इतने पैसे नहीं मिलते थे कि सभी बच्‍चों की फीस भर पाऊं लेकिन मैं चुनौतियों से हार मानने वाली नहीं थी, एक-एक कर गहने बेच देती और मन को समझा लेती कि ये तो फिर बन जाएंगे। खुशी इस बात की है कि औलाद ने सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। आज पूरा गांव हमारे परिवार का सम्‍मान करता है तो लगता है कि संघर्ष छोटा था, यह सम्‍मान बड़ा है। मां ने कहा था कि जीवन में कभी डरना नहीं, डरते वे हैं जो कमजोर होते हैं। मैंने यह बात गांठ बांध ली। रायभा के कॉलेज से बीबीए तक  पढ़ाई की। इसके बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गई। दौड़ के लिए तो रोज जाती ही थी। लक्ष्‍य सामने था लेकिन मेरे दोनों गुर्दों में पथरी हो गई। आरपीएफ में भर्ती के लिए दौड़ लगानी थी और पथरी का दर्द उठ रहा था। ऑपरेशन करा नहीं सकती थी, क्‍योंकि फिर दौड़ नहीं लगा पाती। इसलिए दर्द लेकर ही दौड़ी। मैंने दौड़ में टॉप किया। हालांकि आरपीएएफ में चयन नहीं हो सका। इसके बाद पुलिस की तैयारी में जुट गई। कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे पर तैयारी तो करनी ही थी। मां की दुआएं मेरे साथ थीं, वर्ष 2016 में यूपी पुलिस में भर्ती हो गई। सिपाही बनते ही पूरा परिवार संभाला खाकी वर्दी मिलते ही मैंने सबसे पहले मां से कहा कि अब घर की जिम्‍मेदारी मैं संभालूंगी। मैंने तीनों बहनों और भाई को पुलिस भर्ती के लिए तैयार किया। वर्ष 2019 में तीनों बहनों का पुलिस में और वर्ष 2020 में भाई का पीएसी में चयन हो गया।  मां एक ही बात कहती थी, हमारे कर्म ही हमारा भाग्‍य बदलते हैं, हर बार और हर किसी के साथ चमत्‍कार नहीं होता। यह हमेशा याद रहा। एक और बात थी जिसे मैं नहीं भूली, यह आगरा में एक डॉक्‍टर के क्‍लीनिक की दीवार पर पढ़ी थी, लक्ष्‍य तक पहुंचने से पहले रुकना नहीं है। स्‍वामी विवेकानंद का यह मंत्र, जब तकलीफ में होती हूं तो प्रेरित करता है।

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