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अब आइए संविधान निर्माताओं के भाव पर। उन्हें जाति या धर्म-आधारित आरक्षण कतई मंजूर नहीं था। इसीलिए अनुच्छेद 15(1) में स्पष्ट रूप से राज्य को जाति, धर्म, नस्ल या जन्म स्थान को लेकर भेदभाव न करने का प्रावधान बना। अनुच्छेद 16(4) आरक्षण के कानून बनाने के अधिकार तो राज्य को दिए गए, लेकिन वहां शब्द पिछड़े वर्ग का प्रयोग किया गया न कि जाति का। गणतंत्र बनाने के एक साल में ही तत्कालीन मद्रास सरकार ने एक आदेश जारी कर जाति आधारित आरक्षण को मंजूरी दी जिसे उच्चतम न्यायालय ने गलत करार दिया। लेकिन नेहरू को यह फैसला नागवार गुजरा और तत्काल संविधान संशोधन किया गया जिसके तहत अनुच्छेद 15(4) जोड़ा गया ताकि राज्य को सक्षम किया जा सके। यहां भी जाति शब्द न ला कर वर्ग लाया गया। गनीमत रही कि बारह साल बाद 1963 में सुप्रीम कोर्ट ने एमआर बालाजी केस में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण न करने का निर्देश दिया वर्ना सत्ता के सौदागर इसे 99 प्रतिशत तक ले जाकर छोड़ते।
