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created Apr 9th 2021, 03:44 by AbhishekSoni
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शास्त्रों में कई ऐसी कथा और कहानियां है जिन्हें सुनना सभी को पसंद होता है. ऐसे में आज हम आपको तुलसीदास जी की वह कहानी बताने जा रहे हैं जिसे आप सभी ने शायद ही सुना होगा.
तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली से बहुत प्रेम करते थे. एक बार रत्नावली अपने मायके गई. तुलसीदास से रहा नहीं गया. उस रात भारी बारिश हो रही थी. रत्नावली का घर नदी के उस पार के गांव में था. तुलसीदास, रत्नावली से मिलने के लिए बारिश में निकल पड़े नदी के पास कोई नाव नहीं थी, तब उनको वहां किनारे पर एक बहती लाश दिखाई दी. तुलसीदास ने उस लाश पर बैठकर जैसे-तैसे नदी पार की. रत्नावली के घर पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला.
रत्नावली दूसरी मंजिल पर सोती थी, इसलिए घर के पीछे जाकर ऊपर चढ़ने का रास्ता देखने लगे. घर के पीछे उनको एक मोटी रस्सी दिखाई दी, वो उस रस्सी से चढ़कर ऊपर आ गए और सीधा रत्नावली के कमरे में पहुंचे. रत्नावली हड़बड़ा गई और बोली इतनी रात बारिश में और वो भी ऊपर आप कैसे आए तुलसीदास बोले जो तुमने रस्सी मुझे ऊपर चढ़ने के लिए डाली थी उसी से पकड़कर रत्नावली ने देखा रस्सी नही, सांप था. पति की इस अथाह आसक्ति को देखकर रत्नावली बोली हे नाथ आप मुझसे इतना प्रेम करते हो, इतना प्रेम यदि राम से करते, तो आपका जीवन धन्य हो जाता. रत्नावली की ये बात तुलसीदास के हृदय में उतर गई.
उसी समय तुलसीदास घर से निकल गए और चित्रकूट में एक कुटिया बनाकर रहने लगे, जिसके बाद तुलसीदासजी को भगवान राम और हनुमानजी का साक्षात्कार हुआ और भक्तिभाव में तुलसीदासजी ने रामचरित्र मानस, संकटमोचन, हनुमान चालीसा आदि अनेकों ग्रंथ की रचना की. जीवन की दिशा बदलने के लिए एक वाकया, एक शब्द, एक व्यक्ति काफी होता है. जीवन में आगे बढ़ने के लिए यदि कोई मौका आए, तो उसको हासिल कर लेना चाहिए.
जय श्री राम
तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली से बहुत प्रेम करते थे. एक बार रत्नावली अपने मायके गई. तुलसीदास से रहा नहीं गया. उस रात भारी बारिश हो रही थी. रत्नावली का घर नदी के उस पार के गांव में था. तुलसीदास, रत्नावली से मिलने के लिए बारिश में निकल पड़े नदी के पास कोई नाव नहीं थी, तब उनको वहां किनारे पर एक बहती लाश दिखाई दी. तुलसीदास ने उस लाश पर बैठकर जैसे-तैसे नदी पार की. रत्नावली के घर पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला.
रत्नावली दूसरी मंजिल पर सोती थी, इसलिए घर के पीछे जाकर ऊपर चढ़ने का रास्ता देखने लगे. घर के पीछे उनको एक मोटी रस्सी दिखाई दी, वो उस रस्सी से चढ़कर ऊपर आ गए और सीधा रत्नावली के कमरे में पहुंचे. रत्नावली हड़बड़ा गई और बोली इतनी रात बारिश में और वो भी ऊपर आप कैसे आए तुलसीदास बोले जो तुमने रस्सी मुझे ऊपर चढ़ने के लिए डाली थी उसी से पकड़कर रत्नावली ने देखा रस्सी नही, सांप था. पति की इस अथाह आसक्ति को देखकर रत्नावली बोली हे नाथ आप मुझसे इतना प्रेम करते हो, इतना प्रेम यदि राम से करते, तो आपका जीवन धन्य हो जाता. रत्नावली की ये बात तुलसीदास के हृदय में उतर गई.
उसी समय तुलसीदास घर से निकल गए और चित्रकूट में एक कुटिया बनाकर रहने लगे, जिसके बाद तुलसीदासजी को भगवान राम और हनुमानजी का साक्षात्कार हुआ और भक्तिभाव में तुलसीदासजी ने रामचरित्र मानस, संकटमोचन, हनुमान चालीसा आदि अनेकों ग्रंथ की रचना की. जीवन की दिशा बदलने के लिए एक वाकया, एक शब्द, एक व्यक्ति काफी होता है. जीवन में आगे बढ़ने के लिए यदि कोई मौका आए, तो उसको हासिल कर लेना चाहिए.
जय श्री राम
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