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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Mar 6th 2021, 05:01 by subodh khare


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प्रेमचन्‍द का जन्‍म बनारस शहर से चार मील दूर लमही गांव में हुआ था। आपके पिता का नाम अजायब राय था। वह डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर काम करते थे। धनपतराय की उम्र जब केवल आठ साल की थी तो माता के स्‍वर्गवास हो जाने के बाद से अपने जीवन के अन्‍त तक लगातार विषम परिस्थितियों का सामना धनपतराय को करना पड़ा। पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक प्रेम स्‍नेह को चाहते हुए भी ना पा सका। कहा जाता है कि आपके घर में भयंकर गरीबी थी। पहनने के लिए कपड़े होते थे और ही खाने के लिए पर्याप्‍त भोजन मिलता था। इन सबके अलावा घर में सौतेली मां का व्‍यवहार भी हालत को खस्‍ता कर रहा था।
    आपके पिता ने पंद्रह वर्ष की आयु में आपका विवाह करा दिया। पत्‍नी उम्र में आपसे बड़ी और बदसूरत थी। पत्‍नी की सूरत और उसके जबान ने आपके जले पर नमक का काम किया। आप स्‍वयं लिखते हैं, उम्र में वह मुझसे ज्‍यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया। उसके साथ-साथ जबान की भी मीठी थी। आपने अपनी शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखा है पिताजी ने जीवन के अंतिम सालों में एक ठोकर खाई और स्‍वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया मेरी शादी बिना सोचे समझे कर डाली। हालांकि आपके पिताजी को भी बाद में इसका एहसास हुआ और काफी अफसोस किया।
    विवाह के एक वर्ष बाद ही पिताजी का देहान्‍त हो गया। अचानक आपके सिर पर पूरे घर का बोझ गया। एक साथ पांच लोगों का खर्चा सहन करना पड़ा। पांच लोगों में विमाता, उसके दो बच्‍चे पत्‍नी और स्‍वयं। प्रेमचन्‍द की आर्थिक विपत्तियों का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसे के अभाव में उन्‍हें कोट बेचना पड़ा और पुस्‍तके बेचनी पड़ी। ए‍क दिन ऐसी हालत हो गई कि वे अपनी सारी पुस्‍तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहां एक हेडमास्‍टर मिले जिन्‍होंने आपको अपने स्‍कूल में अध्‍यापक पद पर नियुक्‍त किया।
    अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्‍द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के आरंभ में आप अपने गांव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पांव जाया करते थे। इसी बीच पिता का देहान्‍त हो गया। पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया। स्‍कूल आने-जाने के झंझट से बचने के लिए एक वकील साहब के यहां ट्यूशन पकड़ लिया और उसी के घर एक कमरा लेकर रहने लगे। ट्यूशन का पांच रुपया मिलता था। पांच रुपये में से तीन रुपये घर वालों को और दो रुपये से अपनी जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहे। इस दो रुपये से क्‍या होता महीना भर तंगी और अभाव का जीवन बिताते थे। इन्‍ही जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में मैट्रिक पास किया।

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