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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Mar 3rd 2021, 03:28 by ddayal2004


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इस संसार में हजारों-लाखों लोग पैदा होते हैं और मर जाते हैं। पर उनका नाम तक भी नहीं जानते। पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका नाम भुला पाना संभव नहीं होता। वे मर कर भी अमर हो जाते हैं। उनका नाम लोग बहुत ही आदर और श्रद्धा से लेते हैं। उनके नाम मात्र से जीवन में प्रेरणा पैदा होती है। ऐसे ही नवयुवकों में नाम आता है शहीद भगतसिंह का शहीद भगतसिंह चाहते तो वे भी सुख और आराम का जीवन जी सकते थे। पर उन्‍होंने तो देश के लिए कुर्बानी देकर भारत के नौजवानों के सामने जो उदाहरण पेश किया है, वह कम नौजवन ही पेश कर पाते हैं।
    शहीद भगतसिंह का जन्‍म सन् 1907 में पंजाब में जालंधर के निकट खटकड कलाँ गांव में पिता सरदार कृष्‍ण सिंह जी के घर हुआ था।
    सन् 1919 ई.में जनरल डायर ने अमृतसर में जलियाँवाला बाग में गोलियाँ चलाईं। इनसे हजारों निरापराध और निहत्‍थे लोग मारे गए थे। उस समय भगतसिंह की आयु 11 वर्ष थी। उस समय भगतसिंह ने बाग की मिट्टी को सिर से छूकर प्रतिज्ञा की थी कि मैं देश को स्‍वतन्‍त्र कराने के लिए जीवन भर संघर्ष करूंगा। सरदार भगतसिंह ने नवजवान भारत सभा की स्‍थापना की। क्रांतिकारी और चन्‍द्रशेखर आजाद, वटुकेश्‍वर दत्‍त, जितेन्‍द्र नाथ आदि इसके सदस्‍य बन गए। ये लोग हथियार बनाते थे। पुलिस द्वारा पकड़े जाने के भय से वे एक स्‍थान पर नहीं रहते थे। वे जगह जगह मारे मारे फिरते थे। कुछ दिन भगतसिंह अपने साथियों के साथ आगरे के नूदी दरवाजे में भी रहे थे। उन्‍हीं के नाम पर इस दरवाजे का नाम भगतसिंह द्वार रखा गया है।
  सरदार भगतसिंह और उसके साथियों ने लाला लाजपतराय की मृत्‍यु का बदला लेने के लिए पुलिस कप्‍तान सांडर्स को दिन दहाड़े गोलियों से भून डाला। उन्‍होंने नवयुवकों में जोश पैदा करने और अंग्रेजों के प्रति बैठे भय को दूर करने के लिए असेम्‍बली हाल पर बम फेंका। वे चाहते तो भाग सकते थे, पर उन्‍होंने पुलिस के सामने आत्‍मसमर्पण कर दिया। सरकार ने उन्‍हें मौत की सजा दी और उन्‍हें और उनके दो साथियों राजगुरू और सुखदेव को फाँसी दे दी।
    इस प्रकार सरदार भगतसिंह मरकर भी अमर हो गए। उन्‍होंने भारत के नवयुवकों के सामने देश सेवा की मिसाल पैदा कर दी।  

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