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OM SAI COMPUTER CENTER KADA KI BARIYA CHHATARPUR(CPCT टाईपिंग केन्द्र)
created Mar 2nd 2021, 13:17 by AMITSONI2468976
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प्राचीन काल में प्रारम्भिक शिक्षा की सुद्दढ़ व्यवस्था की गई थी। यह पारिवारिक परिधि से परे आश्रम एवं गुरूकुलों में सम्पन्न होती थी। प्राथमिक शिक्षा का यह समय स्वर्णिम काल कहा जाता है, क्योंकि प्राथमिक शिक्षा नि:शुल्क थी तथा गुरू अथवा श्रेष्ठ ब्राहाम्ण स्वतंत्र रूप से इस शिक्षा को प्रदान करते थे।
सभी बालकों की प्राथमिक शिक्षा का श्रीगणेश उपनयन संस्कार के बाद किया जाता था। इस संस्कार के उपरान्त बालक गुरूवार आश्रम में रहकर ही विद्या प्रारम्भ करते थे।
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन बहुत ही जरूरी होता हे, गुरूकुल में सभी सुबह उठकर नहाते थे। अपने गुरू को प्रणाम करते थे और फिर योगाभ्यास और पूजा पाठ करने के बाद गुरू से शिक्षा ग्रहण करते थे। गुरूकुल के नियम शिष्यों को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए होते थे। सभी शिष्य खाना खाकर दोपहर के समय में भिक्षा मांगने जाते थे, इसमें गरीब से अमीर सभी शिष्य शामिल होते थे।और शाम को अपने गुरू आश्रम को आ जाते थे और शाम को गुरू से शिक्षा लेकर सो जाते थे।
गुरूकुल के नियम एक शिष्य को अच्छा इंसान बनाने के लिए काफी होते थे। गुरू अपने शिष्य को बड़ों का आदर करना सिखाते थे। उनको जीवन में आने वाली परेशानियों का सामना करना सिखाते थे, जिसे वह अपने जीवन में आगे वढ़ता जाए और कभी भी उसको परेशानियों से जूझना न पड़े। वह इन परेशानियों का सामना कैसे करे। गुरूकुल में शिष्यों को सभी तरह की शिक्षा दी जाती थी। जैसे कि धनुष बाण चलाना योगाभ्यास करना नई-नई कलाऍ और ध्यान करना सिखाना।
गुरूकुल में आने के बाद विद्यार्थी को वही पर रखा जाता था। जब तक कि उसकी शिक्षा पूरी न हो जाए। गुरूकुल में शिष्यों को अपने परिवार की तरह रखा जाता था उनकी हर तरह से मजबूत बनाने में उनके गुरू सहयोग करते थे। गुरूकुल में अमीर-गरीब सभी तरह के शिष्य आ सकते थे और गुरूकुल में आने के बाद किसी से भी लेन'देन की बात नही की जाती थी जो शिष्य शिक्षा पूरी कर लेने के बाद अपनी इच्छा से जो देना चाहे वह दे सकते थे। गुरूकुल में गरीब छात्रों से कुछ भी मांगने पर जोर नहीं दिया जाता था वह अपनी इच्छा से जो भी देना चाहे दे सकता था।
गुरूकुल हमारे देश में काफी पुराने समय से चले आ रहे हैं, गुरूकुल के गुरू जैसे कि विशिष्ट मुनि, भारद्वाज बाल्मीकि जैसे महान ऋषि थे जैसे कि विशिष्ट ऋषि के आश्रम में श्रीराम और लक्ष्मण ने शिक्षा ग्रहण की थी, जिनके आधार हमारे लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। और हमको उनसे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
जय हिन्द जय भारत
सभी बालकों की प्राथमिक शिक्षा का श्रीगणेश उपनयन संस्कार के बाद किया जाता था। इस संस्कार के उपरान्त बालक गुरूवार आश्रम में रहकर ही विद्या प्रारम्भ करते थे।
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन बहुत ही जरूरी होता हे, गुरूकुल में सभी सुबह उठकर नहाते थे। अपने गुरू को प्रणाम करते थे और फिर योगाभ्यास और पूजा पाठ करने के बाद गुरू से शिक्षा ग्रहण करते थे। गुरूकुल के नियम शिष्यों को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए होते थे। सभी शिष्य खाना खाकर दोपहर के समय में भिक्षा मांगने जाते थे, इसमें गरीब से अमीर सभी शिष्य शामिल होते थे।और शाम को अपने गुरू आश्रम को आ जाते थे और शाम को गुरू से शिक्षा लेकर सो जाते थे।
गुरूकुल के नियम एक शिष्य को अच्छा इंसान बनाने के लिए काफी होते थे। गुरू अपने शिष्य को बड़ों का आदर करना सिखाते थे। उनको जीवन में आने वाली परेशानियों का सामना करना सिखाते थे, जिसे वह अपने जीवन में आगे वढ़ता जाए और कभी भी उसको परेशानियों से जूझना न पड़े। वह इन परेशानियों का सामना कैसे करे। गुरूकुल में शिष्यों को सभी तरह की शिक्षा दी जाती थी। जैसे कि धनुष बाण चलाना योगाभ्यास करना नई-नई कलाऍ और ध्यान करना सिखाना।
गुरूकुल में आने के बाद विद्यार्थी को वही पर रखा जाता था। जब तक कि उसकी शिक्षा पूरी न हो जाए। गुरूकुल में शिष्यों को अपने परिवार की तरह रखा जाता था उनकी हर तरह से मजबूत बनाने में उनके गुरू सहयोग करते थे। गुरूकुल में अमीर-गरीब सभी तरह के शिष्य आ सकते थे और गुरूकुल में आने के बाद किसी से भी लेन'देन की बात नही की जाती थी जो शिष्य शिक्षा पूरी कर लेने के बाद अपनी इच्छा से जो देना चाहे वह दे सकते थे। गुरूकुल में गरीब छात्रों से कुछ भी मांगने पर जोर नहीं दिया जाता था वह अपनी इच्छा से जो भी देना चाहे दे सकता था।
गुरूकुल हमारे देश में काफी पुराने समय से चले आ रहे हैं, गुरूकुल के गुरू जैसे कि विशिष्ट मुनि, भारद्वाज बाल्मीकि जैसे महान ऋषि थे जैसे कि विशिष्ट ऋषि के आश्रम में श्रीराम और लक्ष्मण ने शिक्षा ग्रहण की थी, जिनके आधार हमारे लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। और हमको उनसे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
जय हिन्द जय भारत
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