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बच्चों को परवाह,खुशी और न्यायपरायणता सिखाएं, क्योंकि तकनीक हावी होने पर इन गुणों की ही जरूरत पड़ेगी
created Mar 2nd 2021, 11:32 by SunTech
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शनिवार की सुबह मेरी 73 वर्षीय आंटी ने बेंगलुरु से फोन किया और घोषणा की कि उनका शहर अब युवा आईटी पेशेवर महिलाओं के लिए सुरक्षित होगा, जो काम के बाद वक्त-बेवक्त टैक्सी किराए पर लेना चाहती हैं। जब मैंने उनसे पूछा ‘कैसे?’ तो उन्होंने कहा कि शनिवार को ‘सैनिकपॉड्स’ नाम से इलेक्ट्रिक कारों के साथ एक नई टैक्सी सर्विस शुरू हो रही है।
उन्होंने मुझे ये सवाल पूछने ही नहीं दिया कि कैसे इलेक्ट्रिक कारें महिलाओं के लिए सुरक्षित होंगी, उनकी बात जारी रही कि रतन टाटा ने भी इलेक्ट्रिक कार उपलब्ध कराते हुए इसमें निवेश किया है। पहले चरण में शनिवार से 10 कारों का परिचालन शुरू हो गया, जो दस दिन में बढ़कर 40 और इसकी मातहत कंपनी ‘मदरपॉड इनोवेशंस’ दो महीने में संख्या बढ़ाकर 170 कर देगी। वह इतनी उत्साहित थीं कि उन्होंने मेरा सवाल ही नहीं सुना।
तब उन्होंने कहा, ‘तुम्हें पता है, ये तुम्हारी मुंबई की काली-पीली कैब की तरह हैं, जिसे बुक करने के लिए एप की जरूरत नहीं होती। हरा संकेत चालू देखें, तो आपको सिर्फ ड्राइवर को हाथ हिलाना है और गाड़ी में बैठना है। जब आप जाने के लिए तैयार होंगे, तो संकेत नीला हो जाएगा।’ उन्होंने उत्साह से कहा कि ये सर्विस पुणे में भी शुरू हो रही है।
अभी तक उन्होंने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया था। तभी कहा, ‘ड्राइवर हमारे पूर्व सैनिकों के अलावा कोई नहीं होगा, इसका मतलब है आप सेना में उनके बिताए वक्त के बारे में दिलचस्प बात कर सकते हैं। और क्या पता उनमें कोई करगिल युद्ध में भी रहे हों!’ और तब जाकर मुझे पता चला कि क्यों वह अपनी पोतियों और उनकी उम्र की बच्चियों के लिए इतना सुरक्षित महसूस कर रही हैं, जो काम पर अकेली जाती हैं।
सवारी साझा करने वाली कैब में यौन उत्पीड़न के मामले ना सिर्फ मेरी विधवा आंटी के घर में ज्वलंत मुद्दा रहे हैं, जो हर दिन डर में जीती हैं जब तक कि उनकी युवा बेटियां सुरक्षित वापस नहीं आ जातीं, बल्कि सरकार में भी बहसतबल बने हुए हैं। आखिरकार किसी को तो अहसास हुआ कि तकनीक में बदलाव के साथ, गाड़ी चलाने वाले व्यक्ति में भी बदलाव की जरूरत है। उसे सबसे पहले इंसान बनना होगा और यात्रियों की सुरक्षा का ध्यान रखना होगा।
हमारे सेवानिवृत्त सैनिकों से बेहतर कौन हो सकता है, जिन्हें ये मूल्य सिखाए जाते हैं कि ‘सबसे पहला राष्ट्र आता है, फिर साथी और आखिर में खुद।’ शायद यही कारण है कि रक्षा मंत्रालय ने कंपनी की पहल में रुचि दिखाई है और 24 घंटे में केंद्रीय सैनिक बोर्ड ने इस नई कंपनी के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।
इसमें भी आश्चर्य नहीं कि इस मंगलवार को हैदराबाद में माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला ने कहा कि तकनीकी कंपनियों को ऐसी सर्विस व उत्पाद बनाने की जरूरत है जो निजता, सुरक्षा, नैतिक एआई और इंटरनेट सुरक्षा के लिए बनाए जाएं। कई बार उच्च तकनीकी दक्ष होने की तुलना में एक साधारण व अच्छा मनुष्य होना बेहतर है।
भविष्य की दुनिया में, जहां तकनीक हमारे रोजमर्रा के हर काम को कब्जे में ले लेगी, वहां हमें अपना ज्यादा बुद्धिमान दिमाग चलाने की जरूरत नहीं होगी, बल्कि धैर्यवान दिल की जरूरत होगी, जो इंसानों की परवाह करे। और याद रखें कि ऐसा केवल जीवित इंसान ही कर सकते हैं, कृत्रिम बुद्धिमत्ता से सक्षम होने के बावजूद बेजान तकनीक नहीं कर सकती।
उन्होंने मुझे ये सवाल पूछने ही नहीं दिया कि कैसे इलेक्ट्रिक कारें महिलाओं के लिए सुरक्षित होंगी, उनकी बात जारी रही कि रतन टाटा ने भी इलेक्ट्रिक कार उपलब्ध कराते हुए इसमें निवेश किया है। पहले चरण में शनिवार से 10 कारों का परिचालन शुरू हो गया, जो दस दिन में बढ़कर 40 और इसकी मातहत कंपनी ‘मदरपॉड इनोवेशंस’ दो महीने में संख्या बढ़ाकर 170 कर देगी। वह इतनी उत्साहित थीं कि उन्होंने मेरा सवाल ही नहीं सुना।
तब उन्होंने कहा, ‘तुम्हें पता है, ये तुम्हारी मुंबई की काली-पीली कैब की तरह हैं, जिसे बुक करने के लिए एप की जरूरत नहीं होती। हरा संकेत चालू देखें, तो आपको सिर्फ ड्राइवर को हाथ हिलाना है और गाड़ी में बैठना है। जब आप जाने के लिए तैयार होंगे, तो संकेत नीला हो जाएगा।’ उन्होंने उत्साह से कहा कि ये सर्विस पुणे में भी शुरू हो रही है।
अभी तक उन्होंने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया था। तभी कहा, ‘ड्राइवर हमारे पूर्व सैनिकों के अलावा कोई नहीं होगा, इसका मतलब है आप सेना में उनके बिताए वक्त के बारे में दिलचस्प बात कर सकते हैं। और क्या पता उनमें कोई करगिल युद्ध में भी रहे हों!’ और तब जाकर मुझे पता चला कि क्यों वह अपनी पोतियों और उनकी उम्र की बच्चियों के लिए इतना सुरक्षित महसूस कर रही हैं, जो काम पर अकेली जाती हैं।
सवारी साझा करने वाली कैब में यौन उत्पीड़न के मामले ना सिर्फ मेरी विधवा आंटी के घर में ज्वलंत मुद्दा रहे हैं, जो हर दिन डर में जीती हैं जब तक कि उनकी युवा बेटियां सुरक्षित वापस नहीं आ जातीं, बल्कि सरकार में भी बहसतबल बने हुए हैं। आखिरकार किसी को तो अहसास हुआ कि तकनीक में बदलाव के साथ, गाड़ी चलाने वाले व्यक्ति में भी बदलाव की जरूरत है। उसे सबसे पहले इंसान बनना होगा और यात्रियों की सुरक्षा का ध्यान रखना होगा।
हमारे सेवानिवृत्त सैनिकों से बेहतर कौन हो सकता है, जिन्हें ये मूल्य सिखाए जाते हैं कि ‘सबसे पहला राष्ट्र आता है, फिर साथी और आखिर में खुद।’ शायद यही कारण है कि रक्षा मंत्रालय ने कंपनी की पहल में रुचि दिखाई है और 24 घंटे में केंद्रीय सैनिक बोर्ड ने इस नई कंपनी के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।
इसमें भी आश्चर्य नहीं कि इस मंगलवार को हैदराबाद में माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला ने कहा कि तकनीकी कंपनियों को ऐसी सर्विस व उत्पाद बनाने की जरूरत है जो निजता, सुरक्षा, नैतिक एआई और इंटरनेट सुरक्षा के लिए बनाए जाएं। कई बार उच्च तकनीकी दक्ष होने की तुलना में एक साधारण व अच्छा मनुष्य होना बेहतर है।
भविष्य की दुनिया में, जहां तकनीक हमारे रोजमर्रा के हर काम को कब्जे में ले लेगी, वहां हमें अपना ज्यादा बुद्धिमान दिमाग चलाने की जरूरत नहीं होगी, बल्कि धैर्यवान दिल की जरूरत होगी, जो इंसानों की परवाह करे। और याद रखें कि ऐसा केवल जीवित इंसान ही कर सकते हैं, कृत्रिम बुद्धिमत्ता से सक्षम होने के बावजूद बेजान तकनीक नहीं कर सकती।
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