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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Mar 1st 2021, 06:28 by subodh khare


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विक्रम बेताल की प्रारंभिक कहानी कुछ इस प्रकार है। बहुत समय पहले की बात है। उज्‍जयनी नाम के राज्‍य में राजा विक्रामादित्‍य राज किया करते थे। राजा विक्रामादित्‍य की न्‍यायप्रियता, कर्तव्‍यनिष्‍ठता और दानशीलता के चर्चे पूरे देश में मशहूर थे। यही कारण था कि दूर-दूर से लोग उनके दरबार में न्‍याय मांगने आया करते थे। राजा हर दिन अपने दरबार में लोगों की तकलीफों को सुनते थे और उनका निवारण किया करते थे।
    एक दिन की बात है। राजदरबार लगा हुआ था। तभी एक भिक्षु विक्रमादित्‍य के दरबार में आता है और एक फल राजा को देकर चला जाता है। राजा उस फल को कोषाध्‍यक्ष को दे देता है। उस दिन के बाद से हर रोज वह भिक्षु राजा के दरबार में आने लगा। उसका रोज का काम यही था कि वह राजा को फल देता और चुपचाप चला जाता। राजा भी प्रत्‍येक दिन भिक्षु द्वारा दिया गया फल कोषाध्‍यक्ष को थमा देता। ऐसे करते-करते करीब दस साल बीत गए। एक दिन जब भिक्षु फिर राजा के दरबार में आकर फल देता है, तो इस बार राजा फल कोषाध्‍यक्ष को देकर वहां मौजूद एक पालतू बंदर के बच्‍चे को दे देते हैं। यह बंदर किसी सुरक्षाकर्मी का था, जो छूट कर अचानक राजा के पास जाता है। बंदर जब उस फल को खाने के लिए दौड़ता है, तो उस फल के बीच से एक बहुमूल्‍य रत्‍न निकलता है। उस रत्‍न की चमक को देख राज दरबार में मौजूद सभी लोग हैरत में पड़ जाते हैं। राजा भी यह नजारा देख आश्‍चर्य में पड़ जाता है। राजा कोषाध्‍यक्ष को इससे पूर्व भिक्षु द्वारा दिए गए सभी फलों के बारे में पूछता है। राजा के पूछने पर कोषाध्‍यक्ष बताता है कि महाराज मैंने उन सभी फलों को राज कोष में सुरक्षित रखवा दिया है। मैं उन सभी फलों को अभी लेकर आता हूं। कुछ देर बाद कोषाध्‍यक्ष राजा को आकर बताता है कि सभी फल सड़-गल गए हैं। उनके स्‍थान पर बहुमूल्‍य रत्‍न बचे हुए हैं। यह सुनकर राजा बहुत खुश होता है और कोषाध्‍यक्ष को सारे रत्‍न सौंप देता है।
    अगली बार जब भिक्षु फल लेकर दोबारा विक्रमादित्‍य के दरबार में पहुंचता है तो राजा कहते हैं, भिक्षु मैं आपका फल तब तक ग्रहण नहीं करूंगा, जब तक आप यह नहीं बताते कि हर दिन आप इतनी बहुमूल्‍य भेंट मुझे क्‍यों अर्पित करते हैं।
    राजा की यह बात सुन भिक्षु उन्‍हें एकांत स्‍थान पर चलने को कहता है। एकांत में ले जाकर भिक्षु राजा को बताता है कि मुझे मंत्र साधना करनी हैं और उस साधना के लिए मुझे एक वीर पुरुष की जरूरत है। चूंकि मुझे तुमसे वीर दूसरा कोई नहीं मिल सकता। इसलिए यह बहुमूल्‍य उपहार तुम्‍हें दे जाता हूं।

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