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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा, सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565

created Mar 1st 2021, 04:55 by Sai computer typing


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हमारे बड़े प्राय: हमें यह शिक्षा देते है कि हमें सदा ईमानदार रहना चाहिए, सत्‍य का आचरण करना चाहिए, अपने कर्तव्‍य का पालन करना चाहिए तथा कमजोर गरीबों की सहायता करनी चाहिए, वस्‍तुत: ये कुछ नैतिक मान्‍यताऍं है, जिन्‍हें हम अपने जीवन के लिए बड़ा महत्‍वपूर्ण मानते आए है तथा जिनके अधिकाधिक प्रचलन के लिए हम प्रयत्‍नशील रहे है। हमारे द्वारा ऐसा किया जाने का कारण वस्‍तुत: यही रहा है कि हम इन नैतिक मान्‍यताओं को अपने जीवन को सुखमय बनाने का साधन मानते है और यह मानते हैं कि इनके बिना मानव जीवन विकृत कष्‍टमय हो जाता है, परन्‍तु इसके विपरीत संसार में जब हम देखते हैं कि असत्‍य धोखाधड़ी तथा बेईमानी का जीवन जीने वाले दु:खी नहीं, उल्‍टे सुखी है तो इस बात पर प्रश्‍नचिन्‍ह लग जाता है कि सत्‍य, कर्तव्‍यपालन तथा ईमानदारी आदि नैतिक मान्‍यताओं को हमें अपने-अपने जीवनयापन का आधार बनाना चाहिए या नही क्‍योंकि अनुभव की बात यह है कि संसार में प्रत्‍येक व्‍यक्ति दिखावे के लिए तो सत्‍य, सच्‍चरित्रता ईमानदारी को अच्‍छा बताता है और यह कहता है कि ये हमारे जीवन के आधार होने चाहिए, परन्‍तु वास्‍तुविक व्‍यवहार में असंख्‍य लोग इन आदर्शो को तिलांजलि देते दिखाई देते है, जब वे यह देखते हैं कि इन पर चलने से जीवन की वास्‍तविक समस्‍याएं हल नही होती तथा इनकी परवाह करने वाले लोग दुनिया में अधिक सुखमय जीवन बिताते है।      
सच्‍चाई ईमादारी को अधिकांश लोग क्‍यों नहीं अपनाते, इस प्रसंग में बेईमानी ईमाानदारी से सम्‍बन्धित एक कहानी बड़ी प्रासंगिक है। कहा जाता है कि एक बार ईमानदारी बेईमानी किसी नदी में स्‍नान करने गई। स्‍नान के लिए अपने-अपने कपड़े उतार कर उन दोनों ने देर त‍क डुबकी लगाए रहने की होड़ के साथ नदी में डुबकी लगाई। बेईमानी अपनी प्रवृत्ति के कारण जल्‍दी पानी से बाहर निकल आई औरी ईमानदारी के कपड़े स्‍वयं पहनकर वहां से चली गई। ईमादारी जब बाद में पानी बहार आई और नदी के किनारे अपने कपड़ो को नही पाया, तो वह असमंजस में पड़ गई, क्‍योंकि बेईमानी के कपड़े पहनकर वह अपने काे बेईमान नहीं बनना चाहती थी। ऐसी स्थिति में उसने निर्वस्‍त्र रहना ही अच्‍छा समझा। कहा जाता है कि तब से ईमानदारी नंगी ही है और उसके कपड़ों को बेईमानी ने पहन रखा है। परिणामस्‍वरूप लोग, जो नंगेपन से बचना चाहते है, ईमानदारी के वस्‍त्र पहनने वाली बेईमानी को अपना लेते है और जब तक उन्‍हें बेईमानी की वास्‍तविकता की पहचान हो पाती है। वे उसी के अभ्‍यस्‍त होकर रह जाते है क्‍योंकि उसके सहारे लोगों की अनेक समस्‍याएं सरलता से हल हो जाती है।      

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