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बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट शॉप नं. 42 आनंद हॉस्टिपटल के सामने, संचालक- सचिन बंसोड मो.नं.

created Mar 1st 2021, 01:52 by shilpa ghorke


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वह दौर भी आएगा, जब कृत्रिम बुद्धिमत्‍ता अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए भी सृजनात्‍मक लेखन संभव हो जाएगा। यह एक खुशखबरी ही है कि कृत्रिम बुद्धिमत्‍ता के जरिए पहले नाटक की रचना हो चुकी है। प्राग स्थित चार्लेस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस कार्य को संभव कर दिखाया है। एआई वेन रोबो राइट्स प्‍ले नामक इस नाटक में एक रोबो की यात्रा कथा है। एक ऐसा रोबो, जो समाज, मानव भावनाओं और यहां तक कि मौत के बारे में जानने के लिए दुनिया में यात्रा पर है। यह भी कम दिलचस्‍प नहीं कि स्‍वयं रोबो शब्‍द भी सौ साल पहले एक चेक लेखक करेल केप के एक नाटक में पहली बार इस्‍तेमाल हुआ था। हम कह सकते हैं कि नाटक में पैदा हुए रोबो ने भी अब अपना पहला नाटक लिख लिया है। दरअसल, यह नाटक लेखन एक एआई सिस्‍टम जीपीटी-2 की मदद से लिखा गया है। इस तकनीक का इस्‍तेमाल पहले फेक न्‍यूज, छोटी कहानी कविताएं लिखने के लिए हो चुका है। वैसे अभी इस एआई सिस्‍टम को बाहरी मदद की जरूरत बहुत पड़ रही है। अभी भाव और कथा के स्‍तर पर यह सिस्‍टम भटक जा रहा है। जैसे रोबो लिखते-लिखते यह भूल गया कि नाटक का नायक रोबो है। इसके अलावा रोबो को लिंगभेद में भी समस्‍या आई। वह भला कैसे तय करता कि वह लड़का है या लड़की। शायद आने वाले समय में रोबो या एआई का भी लिंग निर्धारण करना पड़ेगा। लैंगिक अंतर के साथ ही भाषा भी बदल जाती है, लेकिन रोबो या एआई अभी यह काम नहीं कर पा रहा है। रोबो ने अभी जो नाटक लिखा है, वह अपने तार्किक प्रवाह से भी भटका है। अभी जो स्थिति है, उससे यही लगता है कि एआई सिस्‍टम पहले से उपलब्‍ध सूचनाओं और लेखन का मिश्रण तैयार करने में तो सक्षम है, पर उसकी अपनी बुद्धि अभी सृजनात्‍मक ढंग से नहीं सोच पा रही। मनुष्‍य को चूंकि नाटक की जरूरत महसूस हुई थी, इसलिए उसने नाटक लिखा, लेकिन एआई को नाटक लिखने की जरूरत तो कभी महसूस नहीं होगी। उसे तो मनुष्‍यों के दिमाग के अनुरूप ही काम करना है, लेकिन तब भी हम यह उम्‍मीद कर सकते हैं कि एआई या रोबो आने वाले वर्षों में मानवीय भावना, विचारधारा, भाषा, चेतना, लिंगभेद इत्‍यादि के ज्ञान से लैस होकर अच्‍छा लेखन करने लगेगा। वैज्ञानिक देचेंत जैसे विशेषज्ञ भी हैं, जो इस नाटक को पूरी तरह से एआई का सृजन नहीं मान रहे हैं। वह कहते हैं, मानव की जटिल भावनाओं को समझने और शुरू से अंत तक समन्‍वय के साथ संतुलित लेखन में सक्षम होने में प्रौद्योगिकी को अभी पंद्रह साल लगेंगे। अभी जो नाटक रचा गया है, उससे लोगों का उत्साह बेशक बढ़ा है, जिससे आगे की राह तैयार होगी।

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