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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Feb 27th 2021, 10:57 by subodh khare
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एक ऐसे समाज में जहां व्यक्तिगत और सामूहिक सोच अतार्किक और अवैज्ञानिक हो, जहां एक ट्वीट से दो समुदाय एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हो, जहां एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार कुछ राज्यों में मानसिक रोगी महिला को गांव के लोग डायन मान कर पत्थर से मार देते हों, सरकार के लिए सोशल मीडिया पर अंकुश लगाना न केवल सामयिक, बल्कि जरूरी भी है। दुनिया के अन्य प्रजातंत्रिक देश जैसे सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, ब्राजील, ब्रिटेन और अमेरिका भी यही कर रहे हैं। अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य को दंगे कराने की सीमा तक खुला नहीं छोड़ सकते। उसी तरह एक किशोर को मोबाइल इंटरनेट पर वह सब कुछ देखने की इजाजत नहीं दी जा सकती जिसके लिए विवाह की एक निश्चित उम्र कानूनन है। क्योंकि भविष्य में भी वह बहुत कुछ ऐसा करता है जिससे समाज दूषित होता है। लेकिन भारतीय संविधान ने अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध के लिए अनुच्छेद 19(2) में केवल 8 स्थितियों का जिक्र किया है, जबकि वर्तमान सरकार ने कुछ अन्य तत्व भी जोड़े हैं जो शायद अदालत में संवैधानिकता की कसौटी पर खरे न उतरें। मसलन, प्रतिबंध के जो 10 मुद्दे नए नियम में बताए हैं उनमें इन 8 के अलावा, धन शोधन और जुए को प्रोत्साहित करना या ऐसी कोई विषय वस्तु जो कानून सम्मत न हो, शामिल है। संविधान इनका जिक्र नहीं करता। केंद्रीय मंत्री ने कहा दोहरा स्टैंडर्ड नहीं चलेगा। अमेरिका के कैपिटल हिल हमले पर सोशल मीडिया पुलिस कार्रवाई का समर्थन करे लेकिन भारत की स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतीक लाल किले, जहां प्रधानमंत्री हर वर्ष झंडा फहराते हैं, पर आक्रामक हमले पर दोहरा चरित्र दिखाए, यह नहीं चलेगा। लेकिन स्मरण रहे सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का मात्र एक साधन है, न कि व्यक्ति या संगठन। लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज का अगर अपमान हुआ तो उसके लिए राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण कानून, 1971 है। फिर कैपिटल हिल की तुलना केवल संप्रभु देश के संसद भवन से ही हो सकती है।
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