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बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट शॉप नं. 42 आनंद हॉस्टिपटल के सामने, संचालक- सचिन बंसोड मो.नं.

created Jan 14th 2021, 01:48 by SARITA WAXER


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भारत जैसे विशाल देश में कोरोना टीकाकरण की शुरुआत सुखद और ऐतिहासिक है। आज से साल भर पहले लोग कोरोना के बारे में ठीक से जानते भी नहीं थे, लेकिन आज इस बारे में लगभग सभी को पता है। यह अपने आप में इतिहास ही है कि इतनी जल्दी किसी रोग के टीके का केवल निर्माण हुआ है, बल्कि वह देश के लगभग हर जिले में पहुंच भी गया है। यह अवसर किसी उत्सव से कम नहीं है। पहले चरण में टीके का खर्च पूरी तरह से केंद्र सरकार उठा रही है, तो कोई आश्चर्य नहीं। पहले चरण में करीब तीन करोड़ अग्रिम पंक्ति के कोरोना योद्धाओं को टीका लगाया जाएगा। ताजा आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन अक्तूबर महीने में ही 500 से ज्यादा डॉक्टर कोरोना की वजह से शहीद हुए थे। एक अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहीद होने वाले कुल कोरोना योद्धाओं की संख्या चार अंकों में होगी। जब देश के तमाम अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं को टीका लग जाएगा, तब कम से कम डॉक्टर और चिकित्साकर्मी बेहिचक सेवा कर सकेंगे। देश में हर्ड इम्युनिटी अर्थात सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता के निर्माण में अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं का टीकाकरण बुनियाद है। यह जरूरी है कि 16 जनवरी से शुरू हो रहे इस चरण में टीकाकरण को पर्याप्त कामयाबी मिले। बहुत से ऐसे योद्धा होंगे, जो टीका लेना पसंद नहीं करेंगे, लेकिन उन्हें आश्वस्त करते हुए इस चरण के टीकाकरण को कामयाब बनाना होगा। लोगों की भी निगाह इस अभियान की सफलता पर टिकी है। अभी भी कुछ विपक्षी पार्टियों के नेताओं को टीके की गुणवत्ता पर भरोसा नहीं हो रहा है। ऐसे में, भाजपा शासित राज्यों को इस अभियान में सोलह आना कामयाब उतरना होगा। मामला पूरी तरह से विश्वास का है, लोगों का विश्वास सशक्त करना जरूरी है। यह काम तभी बेहतर ढंग से हो सकेगा, जब डॉक्टर स्वयं टीका लेने के लिए आगे आएंगे। डॉक्टरों को केवल टीका लेने में आगे रहना है, उन्हें इस अभियान को गुणवत्तापूर्ण ढंग से पूरा भी करना है। तमाम सावधानियों के साथ पहला चरण पूरा होना चाहिए और इस चरण में रह जाने वाली त्रुटियों से सीखना चाहिए। इस चरण के बाद संभव है, अगले चरण में टीके के लिए लोगों को भुगतान करना पडे़। करीब छह राज्यों ने अपने यहां लोगों को मुफ्त टीका लगाने का वादा किया है, लेकिन बाकी अनेक राज्य हैं, जो टीका का खर्च उठाने के लिए तैयार नहीं होंगे। स्वाभाविक ही चूंकि टीका महंगा है, इसलिए कुछ सरकारें मुफ्त टीके की घोषणा से बच रही हैं। जो टीका सरकारों को महंगा लग रहा है, वह आम लोगों को कितना महंगा लगेगा, इस बारे में सोच लेना चाहिए। एक और महत्वपूर्ण संकेत यह है कि शायद सरकार लोगों को टीकों में से किसी एक को चुनने का अधिकार नहीं देने पर विचार कर रही है। मतलब जिसे जो टीका दिया जाएगा, उसे वही टीका लेना पड़ेगा। यहां एक अंतर करना पडे़गा, यदि टीकों की कीमत समान नहीं रहेगी, कम या ज्यादा रहेगी, तो लोगों को चुनने का विकल्प मिलना चाहिए। लोगों से टीका चयन का अधिकार तभी छीनना चाहिए, जब टीकों की गुणवत्ता और कीमत में एकरूपता हो। टीकाकरण में हर स्तर पर पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करते हुए ही आगे बढ़ा जा सकता है। साथ ही, टीके के आने का अर्थ यह नहीं कि बचाव या सावधानियों से हम मुंह चुराने लगें।

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