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सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Jan 12th 2021, 04:14 by vinitayadav
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हमारा संविधान बहुत अच्छा और लोकतंत्र विश्व में अनूठा व दूसरों के लिए अनुकरणीय है। सब कुछ अच्छा होते हुए भी कुछ तो ऐसा है जो हमसे छूट रहा है, जिस वजह से हमारी लोकतांत्रिक मर्यादाएं और परम्पराएं कमजोर हो रही हैं। हम हंसी के पात्र बन रहे हैं। हमारे लोकतंत्र की जड़े खोखली हो रही हैं। अमरीका की तरह। जहां सत्ता पर काबिज रहने की राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की जिद ने सैकड़ों वर्ष पुराने अमरीकी लोकतंत्र पर कुछ ही महीनों में सवालिया निशान लगा दिया। हमारे यहां भी दलबदल के नाम पर सालों से यह स्थिति बन रही है। पिछले कुछ वर्षों में हालात ज्यादा खराब हुए हैं।
पहले चुनाव जीत कर आने वाले सांसद-विधायक अपनी या दूसरे की जरूरत के हिसाब से दलबदल करते थे। दलबदल विरोधी कानून बना तो सदन से इस्तीफा देने का रास्ता निकाल लिया गया। सबको लगता है कि देखो कितना भला आदमी है? दलबदल किया तो इस्तीफा दे दिया। हकीकत कुछ और ही होती है। माननीय के मूल पार्टी छोड़तें ही सरकार गिर जाती है। जिस पार्टी की सरकार बनती है, उससे टिकट पक्का करा कर ही इस्तीफा देते हैं। चुनाव के पहले ही मंत्री बन, उपचुनाव जीतने का आधा आधार बना लेते है। गोवा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश उदाहरण हैं। यह तो एक मामला है जिसे लेकर सामाजिक कार्यकर्ता जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, अन्यथा जन प्रतिनिधित्व से जुड़े हमारे कानूनों में विसंगतियों की भरमार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार और खुद को दंतविहीन कहने वाले चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। याची की मांग ऐसे मामलों में दलबदल करने वाले की सदस्यता समाप्त कर उसे छह वर्ष के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने की है। प्रार्थना जायज है। दलबदल के इस घिनौने अवतार ने लोकतंत्र का चीरहरण करने वालों को एक और हथियार दिया है। प्रश्न न्यायालय के समक्ष यह बिंदु रखने का भी है जब स्वयं केंद्र सरकार और चुनाव आयोग एक राष्ट्र एक चुनाव पर जोर दे रहे हैं, तब न्यायालय को पहल करके एक ही बार में व्यापक चुनाव सुधारों का मसला हमेशा के लिए हल कर देना चाहिए।
न्यायालय एक बार अब तक इस दिशा में हुई तमाम कसरतों को पहले अपने पास ले और राममंदिर की तरह हर दिन सुनवाई कर तय समय सीमा में सारे निर्णय कर दे। न्यायालय यह काम करेगा, तो आगे-पीछा सब एक साथ सोच भी लेगा, अन्यथा सरकार में बैठे राजनेता और अफसर तो शाम का सुबह भी नहीं सोचेंगे। ऐसा नहीं हुआ तो आग लगने पर कुआं खोदने जैसा सिलसिला ही जारी रहेगा।
पहले चुनाव जीत कर आने वाले सांसद-विधायक अपनी या दूसरे की जरूरत के हिसाब से दलबदल करते थे। दलबदल विरोधी कानून बना तो सदन से इस्तीफा देने का रास्ता निकाल लिया गया। सबको लगता है कि देखो कितना भला आदमी है? दलबदल किया तो इस्तीफा दे दिया। हकीकत कुछ और ही होती है। माननीय के मूल पार्टी छोड़तें ही सरकार गिर जाती है। जिस पार्टी की सरकार बनती है, उससे टिकट पक्का करा कर ही इस्तीफा देते हैं। चुनाव के पहले ही मंत्री बन, उपचुनाव जीतने का आधा आधार बना लेते है। गोवा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश उदाहरण हैं। यह तो एक मामला है जिसे लेकर सामाजिक कार्यकर्ता जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, अन्यथा जन प्रतिनिधित्व से जुड़े हमारे कानूनों में विसंगतियों की भरमार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार और खुद को दंतविहीन कहने वाले चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। याची की मांग ऐसे मामलों में दलबदल करने वाले की सदस्यता समाप्त कर उसे छह वर्ष के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने की है। प्रार्थना जायज है। दलबदल के इस घिनौने अवतार ने लोकतंत्र का चीरहरण करने वालों को एक और हथियार दिया है। प्रश्न न्यायालय के समक्ष यह बिंदु रखने का भी है जब स्वयं केंद्र सरकार और चुनाव आयोग एक राष्ट्र एक चुनाव पर जोर दे रहे हैं, तब न्यायालय को पहल करके एक ही बार में व्यापक चुनाव सुधारों का मसला हमेशा के लिए हल कर देना चाहिए।
न्यायालय एक बार अब तक इस दिशा में हुई तमाम कसरतों को पहले अपने पास ले और राममंदिर की तरह हर दिन सुनवाई कर तय समय सीमा में सारे निर्णय कर दे। न्यायालय यह काम करेगा, तो आगे-पीछा सब एक साथ सोच भी लेगा, अन्यथा सरकार में बैठे राजनेता और अफसर तो शाम का सुबह भी नहीं सोचेंगे। ऐसा नहीं हुआ तो आग लगने पर कुआं खोदने जैसा सिलसिला ही जारी रहेगा।
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