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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Jan 11th 2021, 11:31 by ddayal2004


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गत सप्‍ताह केंद्र सरकार और विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों के बीच वार्ता का एक और दौर बिना किसी नतीजे के सप्‍ताह हो गया। दोनों पक्षों के बीच अगली बैठक पंद्रह जनवरी को होगी। इस बीच सर्वोच्‍च न्‍यायालय नए कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई करेगा। सरकार ने अपनी ओर से सभी मुद्दों को हल करने की इच्‍छा जताई है और वह नए कृषि कानूनों पर प्रावधान दर प्रावधान चर्चा के लिए भी तैयार दिखी है। परंतु प्रदर्शनकारी किसान ऐसी कोई चर्चा नहीं चाहते वे नए कानून वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं। यह ऐसी मांग है जिसे सरकार पूरा नहीं कर सकती और उसे करना भी नहीं चाहिए।
    प्रदर्शनकारी किसान खुद को सही मानकर गलती कर रहे हैं। नए कृषि कानूनों में ऐसा कुछ लगत नहीं है कि उन्‍हें पूरी तरह वापस लिया जाए। किसानों की मांग में जो निरंकुशता है वह बेवकूफाना भी है और खतरनाक भी क्‍योंकि देश के कृषि क्षेत्र को बदलाव की आवश्‍यकता है। उसे पंजाब और हरियाणा की गेहूं-धन की खेती की संस्‍कृति से उबारने की भी आवश्‍यकता है। न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य को कानूनन अनिवार्य बनाने से इन फसलों की परिणति भी चीनी जैसी होगी। कीमतें असंगत हो जाएंगी और अधिशेष उपज का निर्यात असंभव हो जाएगा। इतना ही नहीं इससे निजी आंतरिक कारोबार और समग्र मांग भी प्रभावित होगी।

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