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बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट शॉप नं. 42 आनंद हॉस्टिपटल के सामने, संचालक- सचिन बंसोड मो.नं.

created Nov 25th 2020, 11:05 by Sawan Ivnati


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प्रौद्योगिकी की दुनिया में नैतिकता का प्रश्‍न कई बार जोर-शोर से उठता है और शोध की सरहदें भी तय होती हैं। यह इंसान और विज्ञान, दोनों के लिए समान रूप से जरूरी है। फेसियल रिकॉग्‍अर्थात चेहरा पहचानने की विधियों पर दुनिया में खूब शोध हो रहे हैं। चेहरा पहचानने की विधि बायोमेट्रिक्‍स का अहम हिस्‍सा बन चुकी है और इसमें आगे शोध का सिलसिला जारी है। चिंता की बात यह है कि इस प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल गलत कामों के लिए भी खूब हो रहा है। नेचर  में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन में उइगर मुस्लिमों की पहचान के लिए इस प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल धड़ल्‍ले से किया जा रहा है। इससे कोरियाई, तिब्‍बती और उइगर चेहरों को अलग-अलग पहचानने की विधि पर शोध हो रहा है। शिनजियांग के उत्‍तर पश्चिमी प्रांत के शिविरों में उइगरों की भारी निगरानी और बड़े पैमाने पर नजरबंदी के लिए चीन की पहले ही अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर निंदा होती रही है। चीन इन शिविरों को पुनर्शिक्षा केंद्र कहता है और इनके जरिए वह वहां चल रहे उग्र आंदोलन को खत्म करना चाहता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी अधिकारियों ने उइगर चेहरों से जुड़े सॉफ्टवेयर बनाए हैं, जिन्‍हें निगरानी कैमरों में लगाया गया है। इस प्रौद्योगिकी को और विकसित करने की दिशा में काम कर रहे वैज्ञानिकों को अपनी मेहनत के दुरुपयोग पर आपत्ति है। ज्‍यादातर वैज्ञानिक नहीं चाहते कि इस प्रौद्योगिकी का उपयोग नस्‍लीय भेद या किसी भी प्रकार के प्रत्‍यक्ष या परोक्ष शोषण में हो।  

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