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BANSOD TYPING INSTITUTE GULABARA CHHINDWARA (M.P.) 8982805777 (सीपीसीटी की सम्‍पूर्ण तैयारी करायी जाती है समय- तीन घण्‍टे)

created Nov 25th 2020, 07:09 by sachinbansod1609336


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ऑनलाइन प्रसारित होने वाली समाचार सामयिक सामग्री के साथ ही फिल्म, श्रव्य-दृश्य सामग्री भी अब सूचना प्रसारण मंत्रालय की निगाह तले गई है। सहज शब्दों में कहें, तो सोशल मीडिया के साथ ही वेब मीडिया भी अब सरकारी समीक्षा के दायरे में गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर निगाह रखने की पैरोकारी विगत कुछ वर्षों से तेज हो गई थी। भारत में ऐसे प्लेटफॉर्म के विनियमन पर व्यापक रूप से बहस और चर्चा होती रही है। सरकार ने भी निर्देश दिए थे कि ओटीटी उद्योग अपने नियमन पर स्वयं विचार करे और प्रस्ताव दे। जब ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ज्यादा दबाव पड़ा, तब इनकी प्रतिनिधि संस्था इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) ने स्व-नियमन का एक प्रारूप पेश किया। एक स्व-नियामक तंत्र बनाने के साथ ही डिजिटल क्यूरेटेड कंटेंट कंप्लेंट्स कौंसिल बनाने का भी प्रस्ताव रखा गया, लेकिन आईएएमएआई के प्रस्ताव से सरकार संतुष्ट नहीं थी, इसलिए अब बाकायदे संविधान संशोधन से विनियमन के काम को खुद सूचना प्रसारण मंत्रालय ने अपने हाथों में ले लिया है। सरकार के इस कदम को जरूरी भी बताया जा रहा है और इसकी खूब आलोचना भी हो रही है। खासकर ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए वेब फिल्में बनाने वाले निर्माता-निर्देशक ज्यादा तनाव में हैं। उन्हें लग रहा है कि सरकार सेंसरशिप की व्यवस्था कर रही है। ऑनलाइन सामग्री पर निगाह रखने का काम किस तरह होगा, यह तो आने वाले दिनों में ही ज्यादा स्पष्ट होगा, लेकिन यह माना जा रहा है कि वेब फिल्मों को अपने निर्माण से पहले और बाद में सेंसरशिप की निगाह से गुजरना पड़ेगा। कई लोग इसे अभिव्यक्ति पर हमला भी बता रहे हैं, लेकिन वास्तव में इधर जिस तरह की सनसनीखेज और सामाजिक-सांविधानिक रूप से आपत्तिजनक फिल्में आई हैं, उन्होंने पूरे समाज के सामने चुनौती पेश कर दी है। अभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बहुत कुछ ऐसा है, जिसे परिवार के साथ नहीं देखा जा सकता, क्या उसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर रियायत मिलनी चाहिए? वेब या सोशल कंटेंट के नाम पर हर तरह की सामग्री को प्रसार-व्यापार का मौका नहीं देना चाहिए। जिन मर्यादाओं की पालना प्रिंट मीडिया, पारपंरिक फिल्म उद्योग, रेडियो, टीवी चैनल पर होती है, उनकी पालना का विस्तार वेब या सोशल मीडिया तक करने में क्या हर्ज है?  
 

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