Text Practice Mode
साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Nov 24th 2020, 10:30 by lovelesh shrivatri
5
395 words
16 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ का नारा लगाते हुए एक बार फिर सभाओं के साथ दुनिया भर में मजदूर दिवस मनाया गया। दुनियां के मजदूरों का दुर्भाग्य ही है कि मजदूरों एक हो जाओ का नारा लगवाने वाले मजदूरों के नाम पर ऐश कर रहे मजदुर नेताओं ने ही मजदूरो को एक नहीं होने दिया और देश-विदेश में अनगिनत मजदूर संगठन खड़े कर दिये गये। कोई कागजी संगठन है तो कोई मंचीय, कोई केवल सरकारी बैठको को सुशोभित करने के लिए है तो कोई संगठन किसी नेता के ड्राईग रूप की शोभा बढ़ा रहा है। कोई केवल अखबार तक ही सीमित है तो कोई केवल भाषणों तक। और तो और कई मजदूर संगठन ऐसे भी मिल जायेंगेे जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है। लेकिन कोई करे भी तो क्या, संपूर्ण व्यवस्था ही ऐसी है। किसी एक नाम से रजिस्ट्रेशन कराओं और असली नकली तरीके से मान्यता प्राप्त करो, और दूसरे मजदूर संगठन में सेंध लगाकर उसमें तोड़-फोड मचाओं और फिर नारा देते रहो कि दुनिया के तमाम मजदूरों एक हो जाओ।
एक मई दिवस शोषण और अत्याचार तथा अन्याय के विरूद्ध संघर्ष करने के संकल्प लेने का दिन है, सुख सुविधा हासिल करने का हथियार नहीं है लेकिन आज यही सब कुछ हो रहा है और अब तो विधायक या सांसद बनने के लिए मजदूर संघों का उपयोग होने लगा है। एक मानसिकता सी बन गई है कि बिना पद के मजदूरों की भलाई नहीं हो सकती। इसके अतिरिक्त विदेशों का सैर-सपाटा करने के लिए भी एक कागजी संगठन की जरूरत होती है ऐसा संगठन आसानी से खड़ा किया जा सकता है। एक समय था जब देश में दो ही मजदूर संगठन हुआ करते थे एक इंटक और दूसरा एटक। लेकिन इन संगठनों का भी राजनीतिकरण कर दिया गया और राजनीतिक दलों के समान उसके भी टुकडे हो गये और आज वे किसी प्रकार अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सुख सुविधा और नेतागिरी की चाह रखने वाले कथित मजदूर नेताओं ने अपने जौहर आमतौर पर मजदूर क्षेत्रों में दिखाये जो संगठित हैं और जो फिर भी कई प्रकार की सुविधाएं हासिल कर रहे है। लेकिन इन नेताओं के साये में आश्रित संगठनोें ने असंगठित क्षेत्र के उन मजदूरों के लिए कभी भी सार्थक पहल नहीं की जो वास्तव में मजदूर है, मजबूर है और अन्याय, अत्याचार तथा शोषण के शिकार है।
एक मई दिवस शोषण और अत्याचार तथा अन्याय के विरूद्ध संघर्ष करने के संकल्प लेने का दिन है, सुख सुविधा हासिल करने का हथियार नहीं है लेकिन आज यही सब कुछ हो रहा है और अब तो विधायक या सांसद बनने के लिए मजदूर संघों का उपयोग होने लगा है। एक मानसिकता सी बन गई है कि बिना पद के मजदूरों की भलाई नहीं हो सकती। इसके अतिरिक्त विदेशों का सैर-सपाटा करने के लिए भी एक कागजी संगठन की जरूरत होती है ऐसा संगठन आसानी से खड़ा किया जा सकता है। एक समय था जब देश में दो ही मजदूर संगठन हुआ करते थे एक इंटक और दूसरा एटक। लेकिन इन संगठनों का भी राजनीतिकरण कर दिया गया और राजनीतिक दलों के समान उसके भी टुकडे हो गये और आज वे किसी प्रकार अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सुख सुविधा और नेतागिरी की चाह रखने वाले कथित मजदूर नेताओं ने अपने जौहर आमतौर पर मजदूर क्षेत्रों में दिखाये जो संगठित हैं और जो फिर भी कई प्रकार की सुविधाएं हासिल कर रहे है। लेकिन इन नेताओं के साये में आश्रित संगठनोें ने असंगठित क्षेत्र के उन मजदूरों के लिए कभी भी सार्थक पहल नहीं की जो वास्तव में मजदूर है, मजबूर है और अन्याय, अत्याचार तथा शोषण के शिकार है।
saving score / loading statistics ...