Text Practice Mode
BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Nov 24th 2020, 09:59 by my home
0
369 words
5 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
ईश्वर के पास मन नहीं होता है। ईश्वर का अर्थ केन्द्र या भूमा से है। यदि इसमें मन होता, तो इस पर भी कर्म का सिद्धांत लागू हो जाता और वह भी हमारी भांति संसार में होता। मन एक औजार अवश्य है जो उसने हमको दिया है। इसका एक भाग हमारे पास है और दूसरा उसके निकट है। हमारा रुख दोनों ओर है। एक भाग से हम लौकिक कार्य करते हैं और दूसरे से पारलौकिक। जब हम अपने निकट वाले मन को उसके निकट वाले सिरे से सम्बद्ध कर देते हैं तो संपूर्ण में एक ही धारा प्रवाहित हो जाती है। और इसी के अभ्यास की आवश्यकता है, ताकि जो खटक उसके निकट वाले भाग में है, वही खटक हमारे निकट वाले भाग अर्थात् मन में उत्पन्न हो जाय।
एक रहस्य की बात मैं बतलाता हूं। हम भक्ति भााव में बहुधा यह कहते चले आये हैं कि बिना ईश्वर की इच्छा के एक पत्ती भी नहीं हिलती और यह सच भी है। परन्तु यदि मैं यह कह दूं कि बिना भक्ति के इच्छा के ईश्वर भी नहीं हिलता, तो नहीं मालूम, महत्मा लोग मेरे बारे में क्या विचार करेंगे। परन्तु बात वास्तव में यही है, और सत्य बात कहनी ही चाहिए ताकि वास्तविकता सबके सामने प्रकट हो जावे।
सर्वोत्कृष्ट अति-चेतना की स्थिति में ध्यानपूर्वक देखने से यह ज्ञात हुआ है कि संसार की रचना में एक लाख बीस हजार वर्ष लगे हैं। यद्यपि भूमा के नीचे, जो शक्ति का क्षेत्र है, उसमें केवल एक ही झटका लगा था, परंतु उसका प्रभाव प्रकट होते-होते और रचना की सामग्री एकत्र होते-होते उपर्युक्त समय लग गया।
केन्द्र के चारों ओर एक वृत्त हे, जो हद है और जिससे पार होना असंभव है। हां, यदि कोई महान शक्ति संपन्न व्यक्ति हो तो वह कदाचित् कुछ सेकंड के लिए उसमें उचक कर झांक सके। यदि इस वृत्त के चारों ओर अपनी इच्छा-शक्ति से एक सजीव विचार विश्व के समाप्त करने का बांध दे और उसकी धाराओं को केन्द्रीय-मण्डल में संकलित कर दे तो वही चीज केन्द्र की शक्ति से मिलकर स्पन्दन पैदा कर देगी और फिर उसकी परिवृद्धि होने से वही शक्ति नीचे को उतरना आरंभ हो जाएगी। अब जितना वेग इसमें पैदा कर दिया जाएगा उतनी ही तेजी से यह चीज बढ़ेगी।
एक रहस्य की बात मैं बतलाता हूं। हम भक्ति भााव में बहुधा यह कहते चले आये हैं कि बिना ईश्वर की इच्छा के एक पत्ती भी नहीं हिलती और यह सच भी है। परन्तु यदि मैं यह कह दूं कि बिना भक्ति के इच्छा के ईश्वर भी नहीं हिलता, तो नहीं मालूम, महत्मा लोग मेरे बारे में क्या विचार करेंगे। परन्तु बात वास्तव में यही है, और सत्य बात कहनी ही चाहिए ताकि वास्तविकता सबके सामने प्रकट हो जावे।
सर्वोत्कृष्ट अति-चेतना की स्थिति में ध्यानपूर्वक देखने से यह ज्ञात हुआ है कि संसार की रचना में एक लाख बीस हजार वर्ष लगे हैं। यद्यपि भूमा के नीचे, जो शक्ति का क्षेत्र है, उसमें केवल एक ही झटका लगा था, परंतु उसका प्रभाव प्रकट होते-होते और रचना की सामग्री एकत्र होते-होते उपर्युक्त समय लग गया।
केन्द्र के चारों ओर एक वृत्त हे, जो हद है और जिससे पार होना असंभव है। हां, यदि कोई महान शक्ति संपन्न व्यक्ति हो तो वह कदाचित् कुछ सेकंड के लिए उसमें उचक कर झांक सके। यदि इस वृत्त के चारों ओर अपनी इच्छा-शक्ति से एक सजीव विचार विश्व के समाप्त करने का बांध दे और उसकी धाराओं को केन्द्रीय-मण्डल में संकलित कर दे तो वही चीज केन्द्र की शक्ति से मिलकर स्पन्दन पैदा कर देगी और फिर उसकी परिवृद्धि होने से वही शक्ति नीचे को उतरना आरंभ हो जाएगी। अब जितना वेग इसमें पैदा कर दिया जाएगा उतनी ही तेजी से यह चीज बढ़ेगी।
saving score / loading statistics ...