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BANSOD TYPING INSTITUTE GULABRA CHHINDWARA M.P.

created Nov 24th 2020, 08:36 by Ashu Soni


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महामारी के आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार में हालात कई अन्य राज्यों से बेहतर हैं, फिर भी बीमारी को और फैलाए बिना सुरक्षित ढंग से चुनाव करा लेना निर्वाचन आयोग के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगा। इस संबंध में मतदान की अवधि एक घंटा बढ़ाने से लेकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए घर पर ही मतदान की व्यवस्था करने तक उसके द्वारा जारी तमाम दिशा निर्देश खासे अहम हैं। देखना यही है कि व्यवहार में इन पर अमल किस हद तक सुनिश्चित हो पाता है। चूंकि यह चुनाव प्रक्रिया से जुड़े एक-एक व्यक्ति और राज्य की समूची जनता की जिंदगी का सवाल है, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि विभिन्न पार्टियों के नेता और प्रत्याशी ही नहीं, कार्यकर्ता, चुनावकर्मी और वोटर भी इस मोर्चे पर एक-दूसरे का सहयोग करेंगे। जहां तक चुनावी लड़ाई की बात है तो वर्चुअल रैलियों का आगाज काफी पहले हो जाने के बावजूद दोनों खेमों में मोर्चेबंदी का मामला बुरी तरह उलझा हुआ है। तय है तो बस इतना कि इस लड़ाई में एक तरफ जेडीयू और बीजेपी होंगी तो दूसरी तरफ आरजेडी और कांग्रेस।
 
इन पार्टियों का आपसी सीट बंटवारा अभी नहीं हुआ है और यह भी तय नहीं है कि दोनों खेमों के बाकी सहयोगियों की इन चुनावों में क्या भूमिका होगी। अब तक खुद को विपक्षी महागठबंधन का हिस्सा बताने वाले आरएलएसपी के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने कह दिया है कि वे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट स्वीकार नहीं कर सकते। दूसरी तरफ एनडीए खेमे में एलजेपी ने साफ किया है कि पार्टी चिराग पासवान को सीएम कैंडिडेट घोषित करके मैदान में उतरने का विचार रखती है। यानी अभी स्पष्ट नहीं है कि इन दलों की ताकत अंततः किसके पक्ष में और किसके खिलाफ काम आएगी। इसके अलावा पिछले तीन दशकों में बिहार विधानसभा का यह पहला चुनाव है जिसमें लालू प्रसाद यादव की कोई सक्रिय भूमिका नहीं होगी। ये चुनाव यह भी बताएंगे कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के इर्दगिर्द उभरा बिहारी अस्मिता का मुद्दा ज्यादा कारगर रहेगा या प्रवासी मजदूरों की तकलीफों का ब्योरा। यह भी कि बिहारी वोटरों में ‘जंगल राज’ की यादें ज्यादा गहरी हैं या मौजूदा शासन से उम्मीदें टूटने की मायूसी।
 
 

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