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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Nov 23rd 2020, 05:36 by my home
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हिंदी का प्रश्न केवल लेखकों और बुद्धिजीवियों का प्रश्न नहीं है, सामान्य जनता का प्रश्न है। विधेयक के विरोध में उठे आंदोलन का वास्तविक मूल्य और महत्व यही है कि वह 'लेखकों और बुद्धिजीवियों की बेचैनी' बन कर नहीं रह गया सच्ची बात तो यह है कि आरंभ से ही उसका रूप एक व्यापक जन आंदोलन का ही रहा जो लेखक ओर बुद्धिजीवी इसमें सक्रिय सहायक हुए वे भी लेखक और बुद्धिजीवी होने के कारण नहीं, बल्कि इस कारण कि हिंदी के आंदोलन को सामान्य हिंदीभाषी जनता का आंदोलन मान सकें, सबके साथ कंधे से कंधा मिला कर काम करने के लिए तैयार हो सकें, लेखक और बुद्धिजीवी होने के नाते अपने को एक विशिष्ट वर्ग के रूप में अलग रखने के मोह जाल से मुक्त हो सकें। प्रयाग के आंदोलन में जिस प्रकार मुक्त रूप से राजनीतिक कार्यकर्ता, लेखक, व्यवसायी, वकील, क्लर्क और अन्य अनके वर्ग एक-दूसरे के सुर में सुर मिला कर हिंदी की बात कह सकें, अपने अनेक पारस्परिक मतभेदों को भुला कर और दबा कर जिस प्रकार हिंदी के प्रश्न पर एकमत हो सकें, वह सचमुच स्तुत्य है। जो प्रयाग में संभव हो सका वह निश्चय ही अन्यत्र भी हो सकता है और यदि हिंदी को अंग्रेजी का स्थान सचमुच लेना है तो ऐसा हो कर ही रहेगा। प्रयाग के 'हिंदी सप्ताह' की अवधि में हुई अनेक सभाओं और गोष्ठियों में से एक विशेष रूप से मशहूर है। सितंबर 12 को उत्तर प्रदेश के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री राधा-कृष्ण के सभापतित्व में एक महत्वपूर्ण विचार-गोष्ठी हुई जिसमें ज्ञान-विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में हिंदी को माध्यम के रूप अपनाने के प्रश्न पर अधिकारी विद्धानों ने अपने मत प्रकट किए। भाग लेने वालों में विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान तथा राजरीति शास्त्र और स्थानीय इंजीनियर तथा मेडिकल कालेजों के प्राध्यापक और उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता थे। इस बात पर सभी एकमत थे कि विज्ञान अथवा औद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने में ऐसी कोई भी दिक्कत नहीं है जो आसानी से दूर न की जा सके। सभी ने कहा कि पारिभाषिक शब्दों के समुचित पर्याय हिंदी में हों या न हों, हिंदी को वैज्ञानिक और औद्योगिक शिक्षा का माध्यम तुरंत बनाया जा सकता है - बशर्ते कि कोई सचमुच बनाना चाहे। लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष ने अपने विस्तृत अनुभव के आधार पर कहा कि "सारे प्रयतों के बावजूद देश में अंग्रेजी का स्तर बराबर गिरता जा रहा है, गिरता ही जाएगा।
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