eng
competition

Text Practice Mode

बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट छिन्‍दवाड़ा सीपीसीटी प्रवेश प्रांरभ मो.नं.8982805777 संचालक सचिन बंसोड

created Oct 29th 2020, 01:51 by Ashu Soni


0


Rating

323 words
13 completed
00:00
आज हिन्‍दी पत्रकारिता दिवस है। एक तरफ बड़े बड़े हिंदी अखबारों, चैनलों में भारी छंटाई की खबरें हैं, दूसरी तरफ ग्‍लोबल मीडिया के बड़े खिलाडियों की आंखों में डिजिटल माध्‍यमों पर हिंदी की भारी पकड़ का विश्‍वास। यानी एक तरफ घर की मुर्गी दाल बराबर है, तो दूसरी तरफ उसकी बांग को नई सुबह की आगाज माना जा रहा है। समझ नहीं आता कि समझदार लोग इस पर सर धुनें की सर ऊंचा करें? जो हो, एक बात तीन महीने की तालाबंदी ने साफ उजागर कर दी है वह यह, कि कोविड के बुखार के बाद भी मुख्‍यधारा के भाषाई, खासकर हिंदी मीडिया का आगामी लोकप्रिय रूप, डिजिटल जगत में ही तैयार होना और बंटना है। कागज पर छपनेवाले अखबारों के कारखानों में नहीं जिनको जिलाये रखने वाले विज्ञापन अब डिजिटल और टी वी के मनोरंजन चैनलों की तरफ मुड चले हैं। आगे से इंटरनेट अलगोरिद्म की मदद से खबरों के बुनने और उनके फटाफट वितरण का दोहरा रास्‍ता होगा, कि छोटे बड़े शहरों के डीलर वेंडर! वजह यह, कि कल तक अमीरों या किशोर नडर्स तक सीमित नेट तक पहले सरकार द्वारा वितरित लैपटॉप ने फिर 2016 के बाद सस्‍ती कनेक्टिविटी से जुडे़ स्‍मार्ट फोन ने तालाबंदी काल में गांव से छोटे शहर तक की सहज पहुंच तय करा दी है। पांच से दस रुपये तक की कीमत वाले दैनिक की अपेक्षा यह माध्‍यम खबरें पाने का सस्‍ता टिकाऊ और लगभग फ्री माध्‍यम है। जीडीपी चाहे रसातल को जा रहा हो, पर आज भारत का हर दूसरा भारतीय स्‍मार्ट फोन रखता है और कुल मोबाइल फोन रखने वाले तो 90 फीसदी से ऊपर हैं। जिनको नेट और ब्रॉडबैंड मयस्‍यर नहीं, उनके जीवन में भी फेसबुक, गूगल तथा ट्विटर सरीके भाषाई बहुलता से भरे सोशल मीडिया एप्‍स ने एक नई क्रांति ला दी है। बंद तालों की परवाह किये बिना यह नये डिजिटल बीजाक्षर सीधे घरों, झोपडियों, महलों और स्‍लम बस्तियों तक खबरों को जनता की अपनी भाषा में पहुंचा रहे हैं।

saving score / loading statistics ...