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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Oct 28th 2020, 12:03 by ddayal2004
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लालच बुरी बला है यह तो सभी ने सुना होगा। लालच का अर्थ यह है कि अधिक से अधिक की अपेक्षा करना। कभी-कभी लालच से जो हाथ में है वह भी छूट जाता है। इसलिए समझदारी इसी में है कि लालच और संतोष की सीमा को समझे अन्यथा कहते हैं कि लालच या दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम।
एक आदमी को पता चला कि साइबेरिया में जमीन इतनी सस्ती है कि मुफ्त ही मिलती है। उस आदमी में वासना जगी वह दूसरे दिन ही सब बेचकर साइबेरिया चला गया। साइबेरिया में उसने एक सेठ से कहा कि मैं जमीन खरीदना चाहता हूं। सेठ ने कहा ठीक है, जितना पैसा लाए हो यहां रख दो और कल सुबह सूरज के निकलते ही तुम चलते जाना और सूरज के डूबते ही उसी जगह पर लौट आना जहां से चले थे, शर्त बस यही है। जितनी जमीन तुम चल लोगे, उतीन तुम्हारी हो जायेगी।
यह सुनकर वह आदमी रातभर योजनाएं बनाता रहा कि कितनी जमीन घेर लूं। उसने सोचा 12 बजे तक पुन: लौटना शुरू करूंगा, ताकि सूरज डूबते-डूबते पहुंच जाऊं। जैसे ही सुबह हुई वह भागा। मीलों चल चुका था बारह बज गए, मगर लालच का कोई अंत नहीं। सोचा लौटते वक्त जरा सी तेजी से और दौड़ लूंगा तो पहुंच जाऊंगा अभी थोड़ा और चल लूं। अंत में तीन बजे लालच की दौड़ थमी और उसने लौटने का निर्णय लिया, लेकिन तब तक हिम्मत जवाब दे गई थी। फिर भी दौड़ने में पूरी ताकत लगा दी। सूरज अस्त होने ही वाला था और लक्ष्य करीब ही था। कुछ गज की दूरी पर गिर पड़ा। घिसटते हुए उसका हाथ उस जमीन के टुकड़े पर पहुंचा, जहां से भागा था और सूरज डूब गया। वहां सूरज डूबा और यहां वह आदमी भी मर गया। शायद हृदय का दौरा पड़ गया था वह सेठ हंसने लगा। जीने का समय कहां है सब लोग भाग रहे हैं।
सुविधाओं के पीछे भागने के बजाय जीवन में जीना सबसे महत्वपूर्ण है। ज्यादा के लालच में जो हमें थोड़ा बहुत मिल रहा है वह भी चला जाता है। कम से कम मुफ्त में मिल रही चीज में तो लालच नहीं करना चाहिए, संचालक बुद्ध अकादमी टीकमगढ़
एक आदमी को पता चला कि साइबेरिया में जमीन इतनी सस्ती है कि मुफ्त ही मिलती है। उस आदमी में वासना जगी वह दूसरे दिन ही सब बेचकर साइबेरिया चला गया। साइबेरिया में उसने एक सेठ से कहा कि मैं जमीन खरीदना चाहता हूं। सेठ ने कहा ठीक है, जितना पैसा लाए हो यहां रख दो और कल सुबह सूरज के निकलते ही तुम चलते जाना और सूरज के डूबते ही उसी जगह पर लौट आना जहां से चले थे, शर्त बस यही है। जितनी जमीन तुम चल लोगे, उतीन तुम्हारी हो जायेगी।
यह सुनकर वह आदमी रातभर योजनाएं बनाता रहा कि कितनी जमीन घेर लूं। उसने सोचा 12 बजे तक पुन: लौटना शुरू करूंगा, ताकि सूरज डूबते-डूबते पहुंच जाऊं। जैसे ही सुबह हुई वह भागा। मीलों चल चुका था बारह बज गए, मगर लालच का कोई अंत नहीं। सोचा लौटते वक्त जरा सी तेजी से और दौड़ लूंगा तो पहुंच जाऊंगा अभी थोड़ा और चल लूं। अंत में तीन बजे लालच की दौड़ थमी और उसने लौटने का निर्णय लिया, लेकिन तब तक हिम्मत जवाब दे गई थी। फिर भी दौड़ने में पूरी ताकत लगा दी। सूरज अस्त होने ही वाला था और लक्ष्य करीब ही था। कुछ गज की दूरी पर गिर पड़ा। घिसटते हुए उसका हाथ उस जमीन के टुकड़े पर पहुंचा, जहां से भागा था और सूरज डूब गया। वहां सूरज डूबा और यहां वह आदमी भी मर गया। शायद हृदय का दौरा पड़ गया था वह सेठ हंसने लगा। जीने का समय कहां है सब लोग भाग रहे हैं।
सुविधाओं के पीछे भागने के बजाय जीवन में जीना सबसे महत्वपूर्ण है। ज्यादा के लालच में जो हमें थोड़ा बहुत मिल रहा है वह भी चला जाता है। कम से कम मुफ्त में मिल रही चीज में तो लालच नहीं करना चाहिए, संचालक बुद्ध अकादमी टीकमगढ़
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