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साँई टायपिंग इन्स्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा, सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565
created Oct 27th 2020, 07:02 by Jyotishrivatri
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एक बार अर्जुन अपने सखा श्री कृष्ण के साथ वन में विहार कर रहे थे। अचानक ही अर्जुन के मन में एक प्रश्न आया और उसने जिज्ञासा के साथ श्री कृष्ण की तरफ देखा श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा हे पार्थ क्या पूछना चाहते हो पूछो अर्जुन ने पूछा हे माधव पूरे ब्राम्हाण में सबसे बड़ा कौन है। श्री कृष्ण ने कहा हे पार्थ सबसे बड़ी तो धरती ही दिखती है पर इसे समुद्र ने घेर रखा है। मतलब यह बड़ी नही समुद्र को भी बड़ा नहीं कहा जा सकता इसे अगस्त्य ऋषि ने पी लिया था पर वे भी आकाश के एक कोने मे चमक रहे हैं। इसका मतलब आकाश बड़ा है पर इस आकाश को भी मेरे बनाम अवतार ने अपने एक पग में नाप लिया था। इसका मतलब सबसे बड़ा मैं ही हूं पर मैं भी बड़ा कैसे हो सकता हूं क्योंकि मैं अपने भक्तों के हृदय मे वास करता हूं अर्थात सबसे बड़ा भक्त है इस तरह भक्त के हृदय में भगवान बसते है इसलिए इस संसार में सबसे बड़ा भक्त है। ईश्वर कभी खुद को बड़ा नही कहता ईश्वर भक्त के मन में वास करता है। उसे ढूंढने के लिये यहां वहां भटकना व्यर्थ है। ईश्वर की चाह में मनुष्य को उसका स्थान देना गलत है ईश्वर सभी के भीतर है अपने कार्मो को सदमार्ग पर ले जाना ही ईश्वर की भक्ति है उसकी चाह में खुद को धोखा देना ईश्वर को धोखा देने बराबर हैं। मनुष्य ईश्वर से डरता है जो कि अर्थहीन है क्ंयूकि ईश्वर भक्तों को आशीर्वाद या दंड नहीं देता बल्कि मनुष्य के कर्म उसे आशीर्वाद अथवा दंड देते है। मनुष्य का जीवन उसके कार्मो से तय होता हैं ईश्वर मनुष्य का मार्ग नहीं बनाता मनुष्य को अच्छे बुरे का विचार खुद करना होता है और अगर प्रत्येक मनुष्य परहित का विचार करे तो वह कभी गलत नहीं होता। आज के समय में मनुष्य भेड़चाल का हिस्सा होते जा रहे हैं1 किसी भी व्यक्ति को संत का चौला पहने देख उसके अंधे भक्त बन जाते है अपने कर्मो का विचार किये बिना उस पाखंडी की बनाई राह को अपना जीवन बना लेते है। एक सिद्ध आत्मा को किसी तरह के भोग विलास की लालसा नहीं होती औरर आज के वक्त में इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है भगवा चोला पहने हर व्यक्ति को ईश्वर का बंदा मानने की गलती ना करें हमारी धार्मिक भावना बहुत बहुमूल्य है जिसके साथ किसी को भी खिलवाड़ करने का मौका ना दे।
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