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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Oct 27th 2020, 06:22 by VivekSen1328209
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अनेक ताकतवर देश संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित प्रस्तावों के प्रतिकूल कार्य कर उनका निरादर करते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करने और इनका उपयोग अपने हित में करने की प्रवृत्ति भी महाशक्तियों में देखी जाती है। परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद भी अमेरिका समेत सभी ताकतवर देशों के पास न केवल परमाणु हथियार हैं, बल्कि उन पर नए परमाणु हथियारों को विकसित करने के आरोप भी समय-समय पर लगते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने अपने पचहत्तर वर्ष पूरे कर लिए। काफी समय से इस संस्था में कुछ मूलभूत बदलावों की आवश्यकता महसूस की जाती रही है। पिछले माह हमारे प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के पचहत्तरवें अधिवेशन को संबोधित करते हुए इसके वर्तमान स्वरूप और कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाए। उनके संबोधन के बाद संयुक्त राष्ट्र में बदलाव की मांग जोर पकड़ने लगी है।
संयुक्त राष्ट्र का गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितियों में सामूहिक सुरक्षा और शांति की स्थापना के मकसद से हुआ था। संयुक्त राष्ट्र के आलोचक मानते हैं कि 1945 से आज तक जब अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच संघर्ष जारी है संयुक्त राष्ट्र इस लक्ष्य की प्राप्ति में अनेक बार पूर्णत: विफल रहा है। अपनी स्थापना के पहले पैंतालीस वर्षों में संयुक्त राष्ट्र को महाशक्तियों के पारस्परिक अविश्वास और शत्रुता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विएतनाम, ग्रेनेडा और पनामा पर आक्रमण किया गया।
विशेषज्ञों का एक बड़ा समूह मानता है कि शक्तिशाली राष्ट्र अपनी ताकत बढ़ाने और अपने राष्ट्रीय हितों की सिद्धि के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का इस्तेमाल करते हैं। कई उदाहरणों से जाहिर है कि जब अमेरिका जैसी महाशक्तियों का हित जुड़ा हुआ था तब विवादों के निपटारे और शांति की स्थापना के लिए यूएन ज्यादा सक्रिय रहा और उसके प्रयासों को कामयाबी भी मिली। पर जब अन्य सदस्यों के हित इन विवादों से जुड़े हुए थे तो संयुक्त राष्ट्र की वैसी रुचि या सक्रियता नहीं दिखी।
संयुक्त राष्ट्र का गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितियों में सामूहिक सुरक्षा और शांति की स्थापना के मकसद से हुआ था। संयुक्त राष्ट्र के आलोचक मानते हैं कि 1945 से आज तक जब अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच संघर्ष जारी है संयुक्त राष्ट्र इस लक्ष्य की प्राप्ति में अनेक बार पूर्णत: विफल रहा है। अपनी स्थापना के पहले पैंतालीस वर्षों में संयुक्त राष्ट्र को महाशक्तियों के पारस्परिक अविश्वास और शत्रुता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विएतनाम, ग्रेनेडा और पनामा पर आक्रमण किया गया।
विशेषज्ञों का एक बड़ा समूह मानता है कि शक्तिशाली राष्ट्र अपनी ताकत बढ़ाने और अपने राष्ट्रीय हितों की सिद्धि के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का इस्तेमाल करते हैं। कई उदाहरणों से जाहिर है कि जब अमेरिका जैसी महाशक्तियों का हित जुड़ा हुआ था तब विवादों के निपटारे और शांति की स्थापना के लिए यूएन ज्यादा सक्रिय रहा और उसके प्रयासों को कामयाबी भी मिली। पर जब अन्य सदस्यों के हित इन विवादों से जुड़े हुए थे तो संयुक्त राष्ट्र की वैसी रुचि या सक्रियता नहीं दिखी।
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