Text Practice Mode
सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Oct 23rd 2020, 15:58 by Jyotishrivatri
3
349 words
10 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
00:00
सातवें नवरात्र में माता का स्वरूप है कालरात्रि। सबको मारने वाले काल की भी रात्रि होने से उनका नाम कालरात्रि है। नाम से कालरात्रि होने के बावजूद यह नवदुर्गा का सहज स्वरूप हैं। यह भक्तों के लिए सनातन हिंदूधर्म में अर्चन-वंदन का रूप है। किंतु जब भक्तों को सताया जाता है तब मां दुर्गा अपने भक्तों की रक्षा के लिए हुंकार भरती है और रौद्र रूप में दुष्टों-दुर्जनों दानवों का संहार करती है। तब मां दुर्गा दरअसल देवी दुर्गा हो जाती है। इस प्रकार कालरात्रि है। एक वाक्य में यह कि सातवें नवरात्र में कालरात्रि है मूरत देवी दुर्गा है सीरत। स्पष्ट हुआ कि पूजनीया मुखाकृति है कालरात्रि लेकिन दंडाधिकारी कार्यप्रकृति है देवी दुर्गा। मां दुर्गा की कालरात्रि सूरज में सज्जनों के लिए स्नेह-सराहना है किंतु देवी दुर्गा की दंडाधिकारी सीरत में दुर्जनों हेतु प्रकोप-प्रताड़ना है।
श्री दुर्गा सप्तशती के अर्गला स्तोत्रम में मार्कडेय उवाच के प्रथम श्लोक में वर्णित दुर्गा शब्द की व्याख्या में पीठ-टिप्पणी के छठे संदर्भ में कहा गया है। जो अष्टांग योग, कर्म एवं उपासना रूप दु:साध्य साधन से प्राप्त होती है, वे जगदम्बिका दुर्गा कहलाती है। सातवें नवरात्र की मां दुर्गा की सहज स्नेह की कालरात्रि की मूर्ति दुष्टों को दंडित करने के लिए देवी दुर्गा होकर पराक्रम की प्रतिमुर्मि हो जाती है। पराक्रम की प्रस्तुति के कारण वीरता की वर्णमाला हैं देवी दुर्गा। पराक्रम दरअसल देवी दुर्गा का हस्ताक्षर है। देवी दुर्गा ने दुष्ट दुर्गम दैत्य संहार किया था, इसलिए उनका नाम दुर्गा पड़ा।
देवी दुर्गा की कथा का सारांश यह है कि एक समय जब दुर्गम नामक दैत्याधिपति अर्थात् महाअसुर ने किसी वरदान से इतनी शक्ति प्राप्त कर ली कि वह दंभ से युक्त होकर अत्याचार करने लगा। यहां तक कि विष्णु, ब्रह्मा, शिव उसे परास्त करना तो दुर, उसके पास फटक भी नहीं सकते थे। तब देवी दुर्गा ने सिंह पर सवार होकर पराक्रम का प्रदर्शन किया और दुर्गम दैत्य को मारकर तीनों लोकों को अभयदान दे दिया।
वर्तमान में इसका अर्थ यह है कि शक्ति पाकर इतराओं मत यानी किसी को सताओं मत। दंभ का द्वार विनाश के गलियारे में खुलता है अर्थात घमंडी का सिर नीचे होता है।
श्री दुर्गा सप्तशती के अर्गला स्तोत्रम में मार्कडेय उवाच के प्रथम श्लोक में वर्णित दुर्गा शब्द की व्याख्या में पीठ-टिप्पणी के छठे संदर्भ में कहा गया है। जो अष्टांग योग, कर्म एवं उपासना रूप दु:साध्य साधन से प्राप्त होती है, वे जगदम्बिका दुर्गा कहलाती है। सातवें नवरात्र की मां दुर्गा की सहज स्नेह की कालरात्रि की मूर्ति दुष्टों को दंडित करने के लिए देवी दुर्गा होकर पराक्रम की प्रतिमुर्मि हो जाती है। पराक्रम की प्रस्तुति के कारण वीरता की वर्णमाला हैं देवी दुर्गा। पराक्रम दरअसल देवी दुर्गा का हस्ताक्षर है। देवी दुर्गा ने दुष्ट दुर्गम दैत्य संहार किया था, इसलिए उनका नाम दुर्गा पड़ा।
देवी दुर्गा की कथा का सारांश यह है कि एक समय जब दुर्गम नामक दैत्याधिपति अर्थात् महाअसुर ने किसी वरदान से इतनी शक्ति प्राप्त कर ली कि वह दंभ से युक्त होकर अत्याचार करने लगा। यहां तक कि विष्णु, ब्रह्मा, शिव उसे परास्त करना तो दुर, उसके पास फटक भी नहीं सकते थे। तब देवी दुर्गा ने सिंह पर सवार होकर पराक्रम का प्रदर्शन किया और दुर्गम दैत्य को मारकर तीनों लोकों को अभयदान दे दिया।
वर्तमान में इसका अर्थ यह है कि शक्ति पाकर इतराओं मत यानी किसी को सताओं मत। दंभ का द्वार विनाश के गलियारे में खुलता है अर्थात घमंडी का सिर नीचे होता है।
saving score / loading statistics ...