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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Oct 23rd 2020, 06:36 by VivekSen1328209


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मां अर्थात माता के रूप में नारी धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्‍वर से भी बढ़कर माना गया है, क्‍योंकि ईश्‍वर की जन्‍मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी तथा मां पार्वती के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे। किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्‍व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्‍सा अपने स्‍वार्थ में डूबतेजा रहे हैं। परंतु जन्‍म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्‍मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जो वर्तमान में कम हो गया है, यह सवाल आजकल यक्षप्रश्‍न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। इस बारे में नई पीढ़ी को आत्‍मावलोकन करना चाहिए।
    अगर आजकल की लड़कियों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये लड़कियां आजकल बहुत बाजी मार रही हैं। इन्‍हें हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ते हुए देखा जा सकता है। विभिन्‍न परीक्षाओं की मेरिट लिस्‍ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय इन्‍हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्‍होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्‍मान किया जाना चाहिए।
    नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है तथा साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है। उसका यह क्रम विवाह तक जारी रहता है। उसे इस दौरान घर के कामकाज के साथ पढ़ाई-लिखाई की दोहरी जिम्‍मेदारी निभानी होती है, जबकि इस दौरान लड़कों को पढ़ाई-लिखाई के अलावा और कोई काम नहीं रहता है। कुछ नवयुवक तो ठीक से पढ़ाई भी नहीं करते हैं, जबकि उन्‍हें इसके अलावा और कोई काम ही नहीं रहता है। इस नजरिए से देखा जाए, तो नारी सदैव पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तो चलती ही है, बल्कि उनसे भी अधिक जिम्‍मेदारियों का निर्वहन भी करती हैं। नारी इस तरह से भी सम्‍माननीय है।
    विवाह पश्‍चात तो महिलाओं पर और भी भारी जिम्‍मेदारियां जाती है। पति, सास-ससुर, देवर-ननद की सेवा के पश्‍चात उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता। वे कोल्‍हू के बैल की मानिंद घर-परिवार में ही खटती रहती हैं। संतान के जन्‍म के बाद तो उनकी जिम्‍मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर-परिवार, चौके-चूल्‍हे में खटने में ही एक आम महिला का जीवन बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। कई बार वे अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं घर-परिवार की खातिर। उन्‍हें इतना समय भी नहीं मिल जाता है वे अपने लिए भी जिएं। परिवार की खातिर अपना जीवन होम करने में भारतीय महिलाएं सबसे आगे हैं। परिवार के प्रति उनका यह त्‍याग उन्‍हें सम्‍मान का अधिकारी बनाता है।  
     

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