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साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Oct 9th 2020, 15:08 by Jyotishrivatri
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एक और जहां यह उपभोक्ताओं की बदलती आदतों और चयन प्राथमिकताओं का सूचक है, वहीं इससे यह भी संकेत मिलते हैं कि लोगों का टीवी पर दिखाई जाने वाली खबरों से मोह भंग होने लगा है। टीवी समाचारों का प्रारूप अब उबाऊ-सा होने लगा है। दूरदर्शन के दौर में लोग शाम तक की खबरों का जायजा टीवी पर लेते थे और खबरों को अधिक गहराई से पढ़ने व समझने के लिए अगले दिन के अखबार का इंतजार करते थे। यह परिदृश्य तब बदला, जब टीआरपी की दौड़ में टीवी न्यूज चैनल सामान्य मनोरजंन चैनल्स के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने लगे और खबरों का स्वरूप बदल कर इन्फोटेनमेंट कर दिया गया। यही से टीवी न्यूज में सनसनी श्रेणी अवतरित हुई और असल खबरे गायब होने लगी, न्यूज स्टूडियों ऐसे अखाडे बन गए जहां हर शाम नूरा कुश्ती होने लगी। यहां परिपाटी इतनी बढ़ गई कि देश-दुनिया की खबरें जानने के लिए घंटों टीवी के सामने बैठे रहने के बावजूद दर्शक खाली हाथ ही रहता है। पहले पाठकों-दर्शकों का रूझान सोशल मीडिया की ओर हुआ लेकिन जैसे ही फेक न्यूज का मकड़जाल फैलने लगा टिवटर, फेसबुक और वॉटसएप की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगे। हालांकि कई न्यूज पोर्टल और यूटयूब चैनल राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व स्थानीय स्तर पर शुरू किए गए, लेकिन उन पर विश्वास मुश्किल ही रहा।
जैसे भोजन में केवल रोटी से काम नहीं चलता, वैसे ही केवल मनोरंजन से बुद्धिजीवियों की क्षुधा का शमन नहीं हो सकता। आखिरकार मानव सोचने-समझने की क्षमता वाला विवेकशील प्राणी है। सूचना और ज्ञान उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। मनोविज्ञान के सिद्वांत के अनुसार मनुष्य की ये स्वाभाविक जरूरतें सामाजिक व आर्थिक उत्थान के साथ स्वत: जन्म लेती है। साथ ही कोई भी राष्ट्र अपने नागरिकों को अंधेरे में रख, देश-दुनिया की हलचलों से अनजान रख कर तरक्की नही कर सकता।
बदलती जीवशैली की मांग के अनुरूप लोग कहीं भी किसी भी क्षण सूचनाओं-समाचारों से अवगत रहना चाहते है। ऐसे में, डिजिटल मीडिया को प्रोत्साहन मिलने की संभावनाएं अत्यधिक है। रेडियों और ऑडियो जगत का भविष्य भी उज्जवल है। कई मीडिया संस्थानों ने पोडकास्ट फॉमेट अपनाना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर पाठक ओर दर्शक ही तय करने वाले हैं कि वे क्या चाहते है। अगर जनता गुणतत्तापूर्ण पत्रकारिता की अपेक्षा रखती है तो मीडिया संस्थाअनों को उसे पूरा करना होगा। उनके पास कोई और विकल्प नहीं है।
जैसे भोजन में केवल रोटी से काम नहीं चलता, वैसे ही केवल मनोरंजन से बुद्धिजीवियों की क्षुधा का शमन नहीं हो सकता। आखिरकार मानव सोचने-समझने की क्षमता वाला विवेकशील प्राणी है। सूचना और ज्ञान उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। मनोविज्ञान के सिद्वांत के अनुसार मनुष्य की ये स्वाभाविक जरूरतें सामाजिक व आर्थिक उत्थान के साथ स्वत: जन्म लेती है। साथ ही कोई भी राष्ट्र अपने नागरिकों को अंधेरे में रख, देश-दुनिया की हलचलों से अनजान रख कर तरक्की नही कर सकता।
बदलती जीवशैली की मांग के अनुरूप लोग कहीं भी किसी भी क्षण सूचनाओं-समाचारों से अवगत रहना चाहते है। ऐसे में, डिजिटल मीडिया को प्रोत्साहन मिलने की संभावनाएं अत्यधिक है। रेडियों और ऑडियो जगत का भविष्य भी उज्जवल है। कई मीडिया संस्थानों ने पोडकास्ट फॉमेट अपनाना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर पाठक ओर दर्शक ही तय करने वाले हैं कि वे क्या चाहते है। अगर जनता गुणतत्तापूर्ण पत्रकारिता की अपेक्षा रखती है तो मीडिया संस्थाअनों को उसे पूरा करना होगा। उनके पास कोई और विकल्प नहीं है।
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