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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Oct 9th 2020, 12:19 by my home


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चालू वित्‍त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्‍पाद यानी जीडीपी के आंकड़े सामने आने के बाद तमाम संस्‍थाओं ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को लेकर आशंकाएं व्‍यक्‍त करना शुरू कर दिया। समीक्षाधीन तिमाही में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि दर में 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इस पर अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन जैसी संस्‍थाओं के अलावा स्‍टैंडर्ड एंड पुअर्स, मूडी और फिच जैसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और तमाम दिग्‍गज अर्थशास्त्रियों ने यही अनुमान व्‍यक्‍त किया कि चालू वित्‍त वर्ष भारत की जीडीपी वृद्धि दर में आठ से 16 प्रतिशत तक की गिरावट सकती है। भले ही गिरावट का जो स्‍तर रहे, लेकिन इससे यही बात जाहिर होगी कि कई वर्षों तक तेज आर्थिक वृद्धि के बाद भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को गिरावट की तपिश झेलनी होगी। तीन दशक तक जोरदार वृद्धि ने लाखों-करोड़ों लोगों को गरीबी के दुष्‍चक्र से बाहर निकाला है। गिरावट की यह स्थिति अप्रत्‍याशित कारणों के चलते उत्‍पन्‍न हो रही है। सरकार जीवन, आजीविका और अर्थव्‍यवस्‍था के लिए उत्‍पन्‍न हुए जोखिम को दूर करने की दिशा में सक्रिय है। अ‍र्थव्‍यवस्‍था को पहुंचे भारी नुकसान की तीव्रता का नाता काफी हद तक देश की राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक मोर्चे से जुड़ी ढांचागत विशेषताओं से भी है। अक्‍लमंदी इसी में है कि नुकसान को कम से कम कैसे किया जाए। इस सिलसिले में मोदी सरकार द्वारा उत्‍साह और उपयोगिता की दृष्टि से किए जा रहे विभिन्‍न ढांचागत, क्रमबद्ध और संस्‍थागत सुधारों का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए। नरसिंह राव और वाजपेयी सरकार को जिस किस्‍म की चुनौतियां झेलनी पड़ी थीं। मौजूदा वक्‍त भी कुछ उसी किस्‍म का है, जो अर्थव्‍यवस्‍था के लिए दूरगामी सुधारों की मांग कर रहा है। ये सुधार राजनीतिक रूप से संवेदनशील भी हैं। भूमि, श्रम और पूंजी जैसे उत्‍पादन के तीनों पहलुओं से जड़े ये सुधार उत्‍पादकता को बेहतर बनाएंगे। इनसे आत्‍मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रतिस्‍पर्धी बढ़त की स्थिति भी बनेगी।  
 

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