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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्‍येय✤|•༻

created Sep 19th 2020, 07:24 by subodh khare


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हाल ही में फेसबुक को लेकर चल रहे विवाद ने, बड़े और महत्‍वपूर्ण मुद्दों को छोड़कर राजनीतिज्ञों का ध्‍यान व्‍यक्तित्‍वों तक सीमित कर दिया है। अपने उपभोक्‍ताओं के विचारों और भावनाओं को सीधे प्रकाशित और सार्वजनिक करने वाले सोशल मीडिया प्‍लेटफार्म, आज सबसे बड़े और प्रभावशाली मीडिया बन गए हैं। इन मंचों ने गोपनीयता पर एक तरह के आक्रमण के माध्यम से डिजिटल विज्ञापन बाजार पर एकाधिकार सा स्‍थापित कर लिया है। ये उन उपयोगकर्ताओं के खिलाफ ही काम करते हैं, जो अपनी सामग्री बनाते और उपभोग करते हैं। उनकी हर ऑनलाइन सूचना और गतिविधि पर जासूसी की जाती है।
         
    ये कंपनियां सभी उपयोगकर्ताओं पर नजर रखती हैं। अपने मंचों पर प्रकाशित सभी कुछ पढ़ती हैं। उन्‍होंने विचारों की मूलभूत स्‍वतंत्रता के लिए जरूरी गोपनीयता को नष्‍ट कर दिया है। पिछले पांच सौ वर्षों में यदि हर पुस्‍तक, अखबार आदि अपने प्रत्‍येक पाठक की जानकारी मुख्‍यालय को देते रहते, तो लोकतंत्र और मानवाधिकारों की नींव कभी अस्तित्‍व में ही नहीं आती।
    ये कंपनियां इसलिए मौजूद हैं, क्‍योंकि कानून उनकी गतिविधियों के बुरे परिणामों की अनदेखी कर रहा है। जबकि अन्‍य प्रकाशकों के साथ ऐसी नरमी नहीं बरती गई है। नागरिकों को अपने प्रति गलत प्रकाशित होने पर कानूनी अधिकार दिए गए है। सोशल मीडिया से जुड़ी कंपनियों ने आपसी सामाजिक जिम्‍मेदारी के दायरे से खुद को बाहर रखने में सफलता प्राप्‍त कर ली है। अपने उपयोगकर्ताओं के पीछे छुपकर वे ऐसा कर रही है।

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