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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤संचालक बुद्ध अकादमी✤|•༻
created Sep 13th 2020, 06:27 by Buddha academy
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देश में शायद ही कोई ऐसा शहर हो जहां पानी की आपूर्ति या सीवरेज प्रवाह की संतोषजनक व्यवस्था हो। नगरपालिकाओं के अधिकारी आमतौर पर आम नागरिकों की शिकायतों के प्रति असंवेदनशील होते हैं और कभी कोई आवश्यक कदम उठाने में शीघ्रता नहीं दिखाते। यहां तक कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं और पर्यावरण संबंधी कानून इसलिए नहीं लागू किए जाते हैं क्योंकि ऐसे मामलों में कहीं न कहीं स्थानीय बाहुबली शामिल होते हैं और कानूनी प्रक्रिया का क्या नतीजा निकलेगा, यह तय नहीं होता। परंतु अब सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि नगरपालिका पार्षदों और नगर निगमों के प्रमुख अधिकारियों पर फौजदारी मुकदमा चलाया जा सकता है।
यह निर्णय कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बेंगलूरू तथा अन्य नगरपालिकाओं के सात आयुक्तों के बीच चौदह वर्ष से चली आ रही कानूनी लड़ाई में दिया गया। यह मामला था कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बी हीरा नाइक के बीच का।
यह निर्णय भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें कंपनी शब्द की व्याख्या की गई है और इसके दायरे का विस्तार करते हुए वैधानिक संस्थाओं को इसमें शामिल किया गया है। अदालत ने जोर देकर कहा कि नगर निगम के सरकारी विभाग होने की दलील दी जाती है लेकिन ऐसा नहीं है। बल्कि यह एक कॉर्पोरेट संस्थान है। चूंकि धारा 47 के तहत सभी निगम संस्थान कंपनी की परिभाषा के अधीन आते हैं इसलिए नगर परिषद भी इस दायरे में शामिल है।
ऐसे में हर उस व्यक्ति का उत्तरदायित्व बनता है जो अपराध घटित होते वक्त प्रभारी रहा हो और कंपनी के कारोबारी आचरण के लिए जिम्मेदार रहा हो। सजा से बचने के लिए उस व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि अपराध बिना उसकी जानकारी के हुआ या उसने अपनी तरफ से उचित सतर्कता बरती थी। जाहिर है जो पद पर रहे हों उनके लिए इसे साबित करने का बड़ा बोझ था। नगर पार्षदों की बात करें तो अब उनकी जवाबदेही कंपनी अधिनियम तथा नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स ऐक्ट के तहत निर्देशकों की जवाबदेही से अधिक है।
यह निर्णय कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बेंगलूरू तथा अन्य नगरपालिकाओं के सात आयुक्तों के बीच चौदह वर्ष से चली आ रही कानूनी लड़ाई में दिया गया। यह मामला था कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बी हीरा नाइक के बीच का।
यह निर्णय भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें कंपनी शब्द की व्याख्या की गई है और इसके दायरे का विस्तार करते हुए वैधानिक संस्थाओं को इसमें शामिल किया गया है। अदालत ने जोर देकर कहा कि नगर निगम के सरकारी विभाग होने की दलील दी जाती है लेकिन ऐसा नहीं है। बल्कि यह एक कॉर्पोरेट संस्थान है। चूंकि धारा 47 के तहत सभी निगम संस्थान कंपनी की परिभाषा के अधीन आते हैं इसलिए नगर परिषद भी इस दायरे में शामिल है।
ऐसे में हर उस व्यक्ति का उत्तरदायित्व बनता है जो अपराध घटित होते वक्त प्रभारी रहा हो और कंपनी के कारोबारी आचरण के लिए जिम्मेदार रहा हो। सजा से बचने के लिए उस व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि अपराध बिना उसकी जानकारी के हुआ या उसने अपनी तरफ से उचित सतर्कता बरती थी। जाहिर है जो पद पर रहे हों उनके लिए इसे साबित करने का बड़ा बोझ था। नगर पार्षदों की बात करें तो अब उनकी जवाबदेही कंपनी अधिनियम तथा नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स ऐक्ट के तहत निर्देशकों की जवाबदेही से अधिक है।
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