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साई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Sep 10th 2020, 10:15 by rajni shrivatri


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वर्ष 1962 में चीनी हमले के बाद संसद में कुछ दिन के लिए प्रश्‍न काल टाला गया था। जिस दिन संसद पर हमला हुआ, उस दिन भी प्रश्‍नकाल टाला नहीं गया था। प्रतिपक्ष के रोष के बाद हंगामा हुआ। इसलिए बैठक अगले दिन के लिए स्‍थगित की गई। उस दिन के प्रश्‍नोत्‍तर सदन के पटल पर रखे गए, ताकि आने वाली पीढि़या जान सकें कि भारत लोकतंत्र को सवोच्‍च सम्‍मान हासिल है। भारत ने लोकतंत्र के तौर-तरीके उस देश से अपनाएं हैं, जिस देश ने भारत को गुलाम रखा। लोकतंत्र की लकड़दादी कहीं जाने वाली ब्रिटिश संसद में एक दिन प्रश्‍नकाल नहीं हुआ। संसद पर हमले की खुफिया सूचना के कारण प्रश्‍न काल टाला गया। विदेशी हमले और संसद पर हमले से अधिक डरावना कोरोना का कहर है। खास आयु से अधिक के निर्वाचित प्रतिनिधि सदन में उपस्थित नहीं हो सकते। संसद में प्रश्‍न काल नहीं होगा। राज्‍यों में यही परिपाटी अपना ली गई। संसद और विधानमंडलों के हंगामों से उकताए कुछ लोग कह सकते हैं कि वैसे भी कितने दिन चलता है? कितना काम होता है। यानी, धारण बन रही है कि निर्वाचित सदनों से प्रश्‍न काल गायब होना महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न नहीं है।  
और वे थके-हारे मजदूर जिन्‍होंने घर जाने की हड़बडी में जान गवां दी, इस बारे में प्रश्‍न नहीं पूछ सकतें है। उनके परिवार जन नहीं जानते कि इस निर्मम हत्‍या-प्रसंग की जांच रपट आई या कब आएगी? उन्‍हें ठीक नहीं पता कि कोई जांच हो रही है या नही। आप भी तो भूल चुके होंगे कि 8 सितंबर को उनकी मौत के चार महीने पूरे हो रहे हैं। महाराष्‍ट्र विधानमंडल का नन्‍हा सा अधिवेशन आरम्‍भ हो चुका है। विधानसभा के अध्‍यक्ष संक्रमित हैं। दोनों सदनों में प्रश्‍न काल नहीं होगा। संसद का अधिवेशन मात्र एक सप्‍ताह दूर है। मध्‍य प्रदेश उप चुनाव की तैयारी में व्‍यस्‍त है। आदिवासी बहुत क्षेत्र से रोजगार की तलाश में निकले मृतकों की मौत का सवाल दो राज्‍यों की विधानसभाओं या राष्‍ट्रीय पंचायत कहलाने वाली संसद में उठने की उम्‍मीद कम है।  

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