eng
competition

Text Practice Mode

बंसोड टायपिंग इन्‍स्‍टीट्यूट मेन रोड गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा मो.नं.8982805777

created Sep 10th 2020, 02:24 by shilpa ghorke


0


Rating

402 words
10 completed
00:00
सामाजिक एवं शैक्षणिक तौर पर पिछड़ गए वंचित वर्गों के आरक्षण पर बहस ने फिर से जोर पकड़ी है, क्‍योंकि सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा कि अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण का उपवर्गीकरण किया जा सकता है। ऐसा ही उपवर्गीकरण यानी आरक्षण के भीतर आरक्षण ओबीसी आरक्षण में भी करने की जरूरत जताई जा रही है। ओबीसी आरक्षण पर मंडल कमीशन की रिपोर्ट को वीपी सिंह सरकार द्वारा लागू किए जाने के बाद जब नवंबर 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने उसे हरी झंडी दी, तब आरक्षण विरोध की राजनीति कुछ थमी अवश्‍य, लेकिन उसका पटाक्षेप नहीं हुआ। समय-समय पर आरक्षित वर्गों के संगठन इस बात को लेकर चिंता जताते हैं कि उच्‍च श्रेणी की सरकारी नौकरियों में उनकी संख्या के मुताबिक आरक्षण प्राप्त नहीं हो रहा है। चूंकि उदारीकरण और निजीकरण के दौर में निजी संस्‍थानों में आरक्षण की कोई सुविधा नहीं है, इसलिए कई दल एवं सामाजिक संगठन निजी क्षेत्र में भी इस सुविधा को मुहैया कराने को लेकर लामबंद हैं। उनकी ओर से अनुपातिक हिस्‍सेदारी की मांग करते हुए कहा जा रहा है कि जिसकी जितनी संख्‍या भारी, उसकी उतनी हिस्‍सेदारी। पिछले सप्‍ताह सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ ने आरक्षण के भीतर आरक्षण को सही ठहराया। इस पीठ का कहना था कि आरक्षण का लाभ सभी तक समान रूप से पहुंचाने के लिए राज्‍य सरकारों को एसटी-एससी श्रेणी में उपवर्गीकरण का अधिकार है। ध्यान रहे कि 2004 में ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने इसके विपरीत फैसला देते हुए कहा था कि राज्‍यों को एसटी-एससी आरक्षण में वर्गीकरण का अधिकार नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 16 वर्ष पुराने फैसले में सुधार की जरूरत है, ताकि आरक्षण का लाभ समाज के निचले तबके को भी मिल सके। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एससी-एसटी वर्ग में भी क्रीमीलेयर लागू की जाए, ताकि आरक्षण का लाभ सबसे जरूरतमंद तबकों तक पहुंच सके। उसके अनुसार राज्‍य आरक्षण देते समय अनुच्छेद 14, 15 और 16 की अवधारणा के आधार पर अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों में तर्कसंगत उपवर्गीकरण भी कर सकता है। यद्यपि सरकार आरक्षित जातियों की सूची में छेड़छाड़ नहीं कर सकती, लेकिन जब आरक्षण एक वर्ग के बीच असमानता पैदा करे तो उसका दायित्‍व है कि वह उपवर्गीकरण के जरिये उसे दूर करे और उसका बंटवारा इस तरह करे कि लाभ सिर्फ कुछ लोगों तक सीमित रहे, बल्कि सभी को मिले। एससी-एसटी वर्ग की जातियां समान नहीं हैं।

saving score / loading statistics ...