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created Jul 1st 2020, 07:49 by sourabh Sahu


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सुप्रीम कोर्ट बार क्‍लर्क एसोसिएशन ने शीर्ष अदालत के समक्ष एक याचिका दायर की है जिसमें पिछले तीन महीनों से चल रही वित्‍ती्य कठिनाईयों के कारण केन्‍द्र सरकार को प्रत्‍येक सदस्‍य को 15,000 रुपये प्रतिमाह का भुगतान करने के लिए निर्देशित करने का अनुरोध किया गया है। यह कहते हुए कि इन महीनों में कई सदस्‍यों को उनका मूल वेतन नहीं मिला है, याचिकाकर्ता एसोसिएशन ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि वह सरकार को प्रत्‍येक सदस्‍य को जून 2020 से सामान्‍य कामकाज बहाल होने और अदालत में प्रभावी ढंग से कार्य शुरू होने तक उपरोक्‍त राशि देने का निर्देश दे। अनुच्‍छेद 21 के तहत उनके जीवन के अधिकार का उल्‍लंघन करने का आरोप लगाते हुए, एसोसिएशन ने 24 मार्च से लगाई गई राष्‍ट्रव्‍यापी लॉकडाउन के परिणामस्‍वरूप, अपने अधिकांश सदस्‍यों द्वारा सामना किए जा रहे वित्‍तीय संकट से कोर्ट को अवगत कराया है। अधिकांश क्‍लर्क गरीबी के कगार पर हैं, जिनके पास बुनियादी सुविधाओं, बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा और यहां तक कि उनके परिवार के सदस्‍यों के लिए भोजन की व्‍यवस्‍था करने के लिए भी बिल्‍कुल पैसा नहीं है। इस प्रकार, ये संविधान के अनुच्‍छेद 21 का घोर उल्‍लंघन है। जहां उत्‍तरदाताओं (केन्‍द्र और राज्‍य सरकारें) की कार्रवाई /निष्क्रियता के कारण याचिकाकर्ता संघ के सदस्‍यों के जैसे व्‍यक्तियों के लिए कोई विकल्‍प प्रदान नहीं किया गया है। '' क्‍लर्कों की भूमिका ''अधिवक्‍ताओं द्वारा किए जा रहे कार्य से आंतरिक रूप से जुड़ी हुई है,'' यह देखते हुए कि एक वकील की आय ताजा फाइलिंग के माध्‍यम से उत्‍पन्‍न होती है, और चूंकि पिछले दो महीनों में बहुत कम फाइलिंग हुई है, ऐसोसिएशन के सदस्‍यों को उनके अधिवक्‍ताओं द्वारा भुगतान नहीं किया गया है क्‍योंकि उनके पास भी पैसा नहीं है, याचिकाकर्ता कहते हैं। इस प्रकार, एसोसिएशन ने एक ऐसी योजना के साथ आने की आवश्‍यकता पर जोर दिया है जो विशेष रूप से अनिश्चित समय के दौरान सुप्रीम कोर्ट क्‍लर्कों के निर्वाह और अस्तित्‍व को सुनिश्चित करने के उद्देश्‍य से हो। ''याचिकाकर्ता ऐसासिएशन के सदस्‍य, उच्‍च न्‍यायालय और ट्रायल कोर्ट में वकीलों के साथ काम करने वाले क्‍लर्कों के विपरीत, परिवार या आस-पास के लोगों में वापस नहीं गए हैं। याचिकाकर्ता के सदस्‍य असम या केरल जैसी दूर-दूर जगह से आते हैं। इसलिए संविधान के अनुच्‍छेद 21 के तहत संवैधानिक गारंटी को लागू करने के लिए हमारे निर्वाह और बुनियादी अस्तित्‍व के लिए योजना तैयार करना आवश्‍यक है।''आगे यह दावा करते हुए कि ऐसासिएशन के सदस्‍यों के लिए जो वर्तमान दुख पैदा हुए हैं केंद्र द्वारा दिए गए लॉकडाउन का एक सीधा परिणाम है, और यह केवल बड़े पैमाने पर लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा करने के लिए, बल्कि प्रत्‍येक व्‍यक्ति की आजीविका भी सरकार की जवाबदेही है। लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य को संरक्षित नहीं किया जा सकता है, जब तक कि वकीलों के क्‍लर्कों की तरह विशेष रूप से कम आय वाले व्‍यक्तियों को गलत तरीके से दुख पहुंचाया जाता है। केंन्‍द्र ने मई के महीने में 20 हजार करोड़ के वित्‍तीय सहायता पैक की घोषणा की थी, जिसमें लघु उद्योगों, प्रवासी श्रमिकों और अन्‍य आर्थिक रूप से परेशान लोगों को शामिल किया गया है, हालांकि, याचिकाकर्ता एसोसिएशन और अन्‍य सदस्‍यों और समान रूप से है'' आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 11 इन शिकायतों के निवारण के लिए राष्‍ट्रीय योजना तैयार करने के लिए विचार करती है। लेकिन इस तरह की कोई योजना तैयार नहीं की गई है। इसलिए, यह अतिरिक्‍त रूप से प्रार्थना की गई है कि सरकार जल्‍द से जल्‍द एक राष्‍ट्रीय योजना के साथ आने के लिए कहा जाए, जिसमें पूर्व-व्‍यापी मुआवजे की शर्तें और राशि स्‍पष्‍ट रूप से निर्दिष्‍ट हो।  

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