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created Jun 26th 2020, 13:30 by sourabh Sahu


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भारत की स्‍वतंत्रता राष्‍ट्रीय आन्‍दोलन का प्रतिफल है। इस आन्‍दोलन की मुख्‍य धरोहर, राष्‍ट्रीय जागरण, लोकतांत्रिक पद्धति के प्रति आस्‍था,  समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, जनमत का सम्‍मान तथा सर्वसहमति से दलीय व्‍यवस्‍था के द्वारा संघीय शासन व्‍यवस्‍था को महत्‍व आदि है इसीलिये जब भारत एक अधिराज्‍य के रूप में स्‍वतंत्र हुआ तो, उसे सर्वप्रभुत्‍व संपन्‍न राष्‍ट्र बनाने और उसकी संप्रभुता को जनता में निहित करने के लिए एक विकसित विस्‍तृत संविधान के निर्माण की आवश्‍यकता महसूस की गयी जो भावी राजनीतिक व्‍यवस्‍था को कर्तव्‍यों यथा ऐसी लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था जो सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक न्‍याय, विचार, अभिव्‍यक्ति तथा विश्‍वास धर्म एवं पूजा की स्‍वतंत्रता, समानता, बंधुत्‍व और राष्‍ट्र की अखण्‍डता और एकता के उद्देश्‍य को लेकर लोक कल्‍याणकारी राज्‍य की स्‍थापना करे, या लिपिबद्ध कर एक दिशा निदेशक का कार्य करें। अस्‍पृश्‍यता और जातिप्रथा भारतीय समाज की बहुत बड़ी बुराईयॉं हैं। इस कुप्रथा से भारतीय समाज भिन्‍न-भिन्‍न वर्गों में बँट गया है। हमारे समाज में अछूतों की दशा बड़ी दयनीय है। वे सभी प्रकार के सामाजिक अधिकारों से वंचित है। अन्‍य जातियों  के साथ खान-पान, मेल-मिलाप और सामाजिक संबंध रखना अपराध माना जाता है। वे ज्ञान और आर्थिक दृष्टि से इतने अयोग्‍य रखे गये कि अपने सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों के बारें में तो जानकारी रखते थे और ही उनका उपभोग कर सकते थे। मंदिर में प्रवेश सार्वजनिक क्षेत्रों का उपयोग उनके लिए वर्जित था। अछूतों की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्‍कृतिक दशा सुधारने के लिये विभिन्‍न कालों में प्रयत्‍न किये गये थे। श्री रामायण काल में स्‍वयं राम ने इससे अभिन्‍न संबंध स्‍थापित किये थे। महात्‍मा गौतम और महावीर स्‍वामी ने जातिप्रथा का खण्‍डन कर हरिजनों को अपने सम्‍प्रदाय में सम्‍मानजनक स्‍थान दिया। इसके बाद स्‍वामी रामानंद ने 14वीं सदी में जाति व्‍यवस्‍था पर तीव्र प्रहार कर हरिजनों और यवनों को अपना शिष्‍य बनाया। रामानंद के बाद कबीर, नामक, तुकाराम, एकनाथ, नामदेव आदि संतों ने भी अस्‍पृश्‍यता को दूर करने का प्रयत्‍न किया था। 19वीं सदी में राजा राममोहन राय, स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती ने आर्य समाज के माध्‍यम जाति व्‍यवस्‍था के बंधन ढीले किये। 20वीं सदी में दक्षिण भारत और महाराष्‍ट्र में निम्‍न जातियों के उत्‍थान के लिये सी.एन.मुदेलियर, टी.एम.नायर, नाइकर, अन्‍नादुरई, अम्‍बेडकर, महात्‍मा फुले ने जाति बंधन को तोड़ने के लिए अनेक आंदोलन किये और शासन को इन जातियों के अधिकारों को दिलाने के लिये विवश किया। इस सदी में अछूतोद्धार का सबसे अधिक प्रयत्‍न महात्‍मा गांधी ने किया। उन्‍होंने अछूतो को हरिजन नाम दिया और हरिजन सेवक संघ की स्‍थापना की। उनके नेतृत्‍व में कांग्रेस ने अस्‍पृश्‍यता निवारण को अपना प्रमुख कार्यक्रम बनाया। स्‍वतंत्रता के पश्‍चात् भारत के नवीन संविधान द्वारा अस्‍पृश्‍यता का पालन गैर कानूनी घोषित कर दिया गया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि भिन्‍न समुदायों ने भी अस्‍पृश्‍यता निवारण और निम्‍न जातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलनात्‍मक प्रयत्‍न किये गए। फिर भी जब तब उनकी शिक्षा और आर्थिक प्रगति के अवसर शासन द्वारा नहीं उपलब्‍ध नहीं कराये जाते हैं। तब तक ये जातियॉं देश  की सम्‍पन्‍नता में साझेदार नहीं हो सकती है। मुस्लिम समाज में जागरण 19वीं सदी के समाज सुधार आंदोलनों से भारत का मुस्लिम समाज अछूता नहीं रह सका। 1857 के विद्रोह में मुस्लिमों की सक्रिय भागीदारी के कारण इस समाज को आगे के वर्षों में अंग्रेज सरकार के कोष का भाजन बनना पड़ा। अंग्रेजों की दमनकारी नीति के परिणामस्‍वरूप मुस्लिम शिक्षा और रोजगार से वंचित होते गये और उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय होती गयी। ऐसे समय में सर सैयद  अहमद खॉं ने मुस्लिमों की गिरी हुई दशा को सुधारने के लिये विशेष प्रयास शुरू किये। सर्वप्रथम उन्‍होंने अंग्रेजों और मुस्लिमों के बीच संबंधों को सुधारने का प्रयास किया। सर सैय्यद अहमद एक कट्टर समाज और धर्म सुधारक थे। उनका दृढ़  विश्‍वास था कि जब तक मुस्लिम समाज को आधुनिक पाश्‍चात्‍य शिक्षा से नहीं जोड़ा जायेगा। तब तक मुसलमानों के जीवन स्‍तर में सुधार होना असंभव है। इसके लिए उन्‍होंने मदरसों की शिक्षा, पर्दा-प्रथा, बहु विवाह का विरोध किया और मुस्लिम शिक्षा के लिए सर्वप्रथम 1864 में गाजीपुर में अंग्रेजी शिक्षा का विद्यालय खोला और 1877 को अलीगढ़ में ऐंग्‍लों ओरियंटल कॉलेज की स्‍थापना की जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय कहलाया और उनके द्वारा मुस्लिम समाज के तौर तरीकों में परिवर्तन लाने के लिये अलीगढ़ आंदोलन चलाया। इसमें मुस्लिम संकीर्णता, कुरान से ही जुड़े रहकर नयी तरक्‍की को अपनाने की सोच को बदलने का प्रयास किया। किन्‍तु यह मुस्लिम साम्‍प्रदायिकता को कम नहीं कर सका। फिर भी इस आंदोलन में शिक्षा और सामाजिक सुधार के द्वारा मुस्लिम संप्रदाय को अकर्मण्‍डता और निराशाजनक वातावरण से ऊपर उठने में मदद और उन्‍हें आधुनिकता की ओर मोड़ कर उसके अनुकूल बनाने का प्रयास सफलतापूर्वक निभाया।  

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