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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤CPCT_Admission_Open✤|•༻

created Jan 27th 2020, 05:23 by SubodhKhare1340667


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हाल के वर्षों में किसानों का संकट बहुत चर्चा में रहा है। खेती-किसानी वास्‍तव में बहुत कठिनाई के दौर से गुजर रही है। इसके बावजूद यदि हम केवल किसान के संकट के स्‍थान पर गांव के संकट को विमर्श के केंद्र में रखें तो यह और सार्थक प्रयास होगा। इसके कई कारण हैं। एक वजह से यह है कि अनेक गांवों में भूमिहीन परिवारों की संख्‍या अब काफी अधिक है। वे भी खेती में मजदूर या बटाईदार या ठेके पर खेती करने वाले के रूप में महत्‍वपूर्ण रूप से जुड़े हैं पर प्राय: सरकारी परिभाषा में उन्‍हें किसान के रूप में मान्‍यता नहीं मिलती है। यदि गांव के सबसे निर्धन परिवारों को विमर्श के दायरे में रखना है तो भूमिहीन परिवारों प्रवासी मजदूरों पर आधारित परिवारों को भी ध्‍यान में रखना होगा। इसके अतिरिक्‍त किसान परिवार के विभिन्‍न सदस्‍य भी अब मजदूरी सहित अन्‍य रोजगारों में रहे हैं।
    अनेक छोटे किसानों की आर्थिक मजबूती के लिए यह जरूरी हो गया है कि ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था में अधिक विविधता भरी आजीविकाएं हो, जिसे वे खेती-किसानी का अपना मूल आधार बनाए रखते हुए भी अन्‍य रोजगारों से पर्याप्‍त धन अर्जन कर सकें। खेती-किसानी के टिकाऊपन के लिए गांवों में जल संरक्षण के कार्य जरूरी हैं। गांव के पर्यावरण हरियाली की रक्षा जरूरी है। इन सभी महत्‍वपूर्ण पक्षों को ध्‍यान में रखते हुए किसान-संकट के समाधान के साथ ग्रामीण संकट के समाधान का अधिक व्‍यापक विमर्श होना चाहिए। खेती-किसानी पर तेजी से बढ़ते हुए खर्च इससे जुड़े कर्ज को कम करना बहुत जरूरी हो गया है।

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