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बंसोड टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा, छिन्‍दवाड़ा मो.न.8982805777 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रांरभ

created Sep 19th 2019, 04:27 by Sawan Ivnati


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दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान 12 दिसम्बर 1911 को हुआ था। तब भारत के शासक किंग जार्ज पंचम ने दिल्‍ली दरबार में इसकी आधारशीला रखी थी। बाद में ब्रिटिश आर्किटेक्‍स सर हरर्बट बेकर और सर एडविन लुटियंस ने नए शहर की योजना बनाई थी। इस योजना को पूरा करने में दो दशक लग गए। इसके बाद 13 फरवरी 1931 को आधिकारिक रूप से दिल्ली देश की राजधानी बनी। इतिहासकारों का मानना है दिल्‍ली शहर फारसी के देहलीज से आया है क्‍योंकि दिल्‍ली गंगा के तराई इलाकों के लिए एक देहलीज थी। कुछ लोगों का मानना है कि दिल्‍ली का नाम तोमर राजा ढिल्‍लू के नाम पर पड़ा। एक अभिशाप को झूठा सिद्ध करने के लिए राजा डिल्‍लू ने इस शहर की बुनियाद में गडी एक कील को खुदवाने की कोशिश की। इस घटना के बाद उनके राजपाट का तो अंत हो गया लेकिन मशहूर हुई एक कहावत, दिल्‍ली तो ढिलाली भई, तोमर हुए मतीहीन जिससे दिल्‍ली को उसका नाम मिला। 12 दिसंबर 1911 ब्रिटिश राज के सबसे बडे तमाशे दिल्‍ली दरबार में पहली बार किंग जॉर्ज पंचम अपनी रानी क्‍वीन मैरी के साथ मौजूद थे। उन्‍होनें अस्‍सी हजार लोगोंकी मोजूदगी में घोषणा की, हमें भारत की जनता को यह बताते हुए बेहद हर्ष हो रहा है कि सरकार भारत की राजधानी को कलकत्‍ता से दिल्‍ली स्‍थानांतरित कर रही है। तब दिल्‍ली बहुत पिछड़ी थी। बॉम्‍बे, कलकत्‍ता और मद्रास जैसे महानगर हर बात में काफी आगे थे। यहां तक कि लखनऊ और हैदाराबाद भी दिल्‍ली से बेहतर माने जाते थे। दिल्‍ली की महज तीन फिसदी आबादी अंग्रेजी पढ़ पाती थी। यही कारण है कि विदेशी भी बहुत कम आते थे। मेरठ की तुलना में भी दिल्ली काफी कम विदेशी आते थे। हालात इतने खराब थे कि कोई बड़ा आदमी वहां पैसा लगाने को तैयार नहीं था, लेकिन भौगोलिक आकार से देश के मध्‍य में होने के कारण दिल्‍ली को राजधानी बनाने का ऐलान हुआ। दो दशक तक इसे विकसित किया गया तब दिल्‍ली में पेट्रोल तीस पैसे लीटर था।लेकिनवाहन तेजीसे चलाने पर सौ रूपए तक अर्थदंड वसूला जाता था। यह तेज गति थी 19 किमी प्रति घंटा दिल्‍ली में बर्मा ऑइल कंपनी पेट्रोल बांटती थी  

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